// रब्ब से वास्ता //
कितना पाक रिश्ता मुझसे रब्ब निभा रहा है ।
कुछ न कहकर भी सब कुछ समझा रहा है ।
खुद की नादानियों से बहुत शर्मिदा हूँ, और
तू मुझे खुद के एहसास से मिला रहा है !!-
मन्दिरों मस्जिदों मे ही क्यों ढूंढते है लोग उस को
रब्ब तो वहाँ भी है जहां गुनाह होतें है-
ओही दिलों लाहके बैठी ऐ जिनु दिल च बसाया सी
ओहने ने ही मिट्टी च मिलाया जिनु रब्ब मैं बनाया सी
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मन में चलता है खामोशियों का दरिया,
खामोश है दिल, खामोश मन है।
न तो है सिफारिश कोई रब्ब से और न ही जेब में प्रयाप्त धन है।
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जिसको देखो वही ढ़ालना चाहे दूजे कोअपने साँचे मे !
बिना सोचे,उस रब्ब ने ढ़ाला है उसको अल्हदा साँचे में !!
क्यों नाहक अश़्क भरते हो अपनों की ही आँखों में !
ड़रो खुदा से तुम आवाज़ नहीं होती उसके तमाचे में !!
बेइन्तिहा ना तड़पाओ किसी के दिल को जीभर कर !
ना समेटो दुःखी दिल की बददुओं को अपने खाँचे में !!-
दौलत शौहरत कामयाबी
ता उम्र तेरा पीछा करे
मंजिलें खुद तेरा पता पूछा करे
हो दुआ रब्ब की शरीक एेसे
सारी कायनात तेरे नाम से गूँजा करे-
किसी ने इशक़ कहा
किसी ने बंदगी कह दिया
किसी ने रब्ब को यार कहा
तो किसी ने यार को ही रब्ब कह दिया-
मेरी पहचान नहीं कोई, हां मैं गुमनाम था और हूँ,
के मेरे साथ वो रब्ब हैं, न मैं शैतान था ना अब हूँ।
जो वक्त आज नहीं मेरे साथ, शायद कल बदल जाए,
के ये जिंदगी सँवर जाए, ये इम्तिहान सफल जाए।-
इंतकाम मुझसे कुछ यूं लिया उस रब्ब ने,
मुझे बार-बार नाकामयाबीयों का बुरा अंजाम दिया उस रब्ब ने।
युं तो नाकामी ही कामयाबी की बुनियाद है,
फिर भी मेरी रब्ब से बस एक ही फर्याद है।
कुछ तो रास्ता दिखाओ अंदर से टूटकर हार गया हूँ अब मैं,
मुझे अब अपनी हारी हुई शक्ल ही नज़र आती हैं सब में,
नाकाम होने को लोग अपने लिए शर्मिंदगी का सबब समझते हैं,
जो बादल गरजते हैं आखिर वो कहाँ बरसते है।
आखिर में क्यूं मुझे हर बार हारने पे ताना दिया सबने,
इंतकाम मुझसे कुछ यूं लिया उस रब्ब ने,
मुझे बार-बार नाकामयाबीयों का बुरा अंजाम दिया उस रब्ब ने।-