हे मन...!
सोचे तो तू विस्तृत, घना, गहरा
हे कलम...!
फिर क्या मजबूरी हुई तू बता..?
जो चल ना पाये यदाकदा...!!
8जून2021
9:55am
-
नवल हर्ष से , नवीन उमंग से , स्वागत नूतन वर्ष
मानस का हो अभ्युदय प्रगतिशील रहे भारतवर्ष !
“ वर्ष 2025 शुभ हो, मंगलमय हो “-
काली घटा घनी छाई
घिर घिर चहुँ दिशि माहि।।
थिरति नहिं बूंद तराई
नदियां भरि चलि उतराई।।
-
अकड़ नहीं है उसमे ,जरा भी नही!
बहुत टूटी हुई सी मिली है मुझसे
कहती है बहुत हिम्मत है उसमें
पर छल से टूट जाती है वो हर बार
समझ नहीं आता की आखिर
ये छल क्या है! क्या कोई झूठ है?
जो यदा कदा बोला गया हो
या फिर किसी को दुःखी
न करने के लिए नहीं कहा गया कोई वाक्य
या ,क्या छल यह भी है
सच को अपनी सुविधा अनुसार बताना
क्या चुप रहना भी छल मान लिया जाना चाहिए
क्यूं दुखी होता है यह किसी के सच न बोलने से
क्यों टूट जाता है कोई झुठ सुन लेने भर से
क्यों छली जाती रूह किसी के चुप भर रहने से।
-
रंग बाँट लिया संग साथ बाँट लिया
धरती बँटी थी अब फ़िज़ा बाँट लिया
बिरयानी फिरनी पर हक़ जमा लिया
कुर्ता झुमका मेरा तेरा कर बाँट लिया
मंदिर मस्जिद कर दो फाड़ का खेल ख़ूब खेला
मुक़दमे, पेशी में सज्जाद व हाकिम बाँट लिया
क्या बचेगा इस अंधी बंदर बाँट से रजनीश
घर आँगन को भी जमाने के ज़हर ने बाँट लिया
~टी रजनीश
#यदाकदा
-