सचिन प्रताप सिंह परिहार   (सचिन सिंह परिहार 🏵)
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Joined 10 March 2019


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Joined 10 March 2019

शुभता में भरी रहे
धवल नवल किरणें बिखरे

लालिमा लिए सूर्य उदय
मंद शीत पवन लिए।।

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क्रोध न उपजाइए।।
स्वलंबन में सुख पाइए।।

जनता से आश न लगाइए
अपने आप कार्य कुशलता पाइए।।

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नशीले पेय पानकर्ता
कलुषित विष है धर्ता

स्व जीवन नष्ट कर्ता
क्षतिपूर्ति काल न भरता ।।

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कौतुक दृश्य मग्न
दिवा रात्रि लग्न

अनुपम आनंद
निश्छल मन

बालपन स्मरण
मृदुल निमिष क्षण ।।

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कर जोड़ कर बारम्बार प्रणाम करते हैं।
आदि शक्ति देवी को शत् नमस्कार करते हैं।।

नव संवत्सर में नवरात्रि नव संचार है।
धरित्री पर मां नव दुर्गा का अवतार है।।

दनुज भय मुक्त कर आयुध हाथ है।
मनुज तन आशीष कर वर मुद्रा साथ है।।

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कंठ कुछ अवरुद्ध सा है।
नैन जल सूखे से है।

अपरिचित क्षण अनायास ही है।
अव्यक्त भाव की टीस ही है।

मन में एक नव आयाम है।
भाव को द्रवित करना दुर्गम है।।

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निद्रा

नींद हैं खो जाना अनन्त स्वप्न सागर में,
गोते लगाते कल्प अनुपम क्षण में,
भूली स्मृतियां कुछ कल्पनाओं में,
भूत भावन भविष्यक भान में,
निद्रा अचेतन गहरी, जाग वर्तमान में।।

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श्रीकृष्ण जन्माष्टमी महोत्सव

सांवली सी सूरत
भोली सी मुस्कुराहट
मक्खन मिश्री प्रीत
बांसुरी मधुर गीत।।

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कही नहीं जाते ||

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रंग रचित लाल |
पाटल दल गुलाल ||

चरण तनि कमल |
पुष्प सम कोमल ||

नख छवि उज्ज्वल |
जलधार थामे बादल ||

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