टूटे धागों को जोड़ा करती,
हर दिन तैयारी करती,
अपने सपनों का ताना-बाना,
कुछ बुनती कुछ सिलती !
खुशियों से कुछ रंग चुराती,
उसमें पूरा प्यार मिलाती,
नये रंगों से भरपूर एक सपना,
अपने खातिर हर रोज सजाती!
गिरती जाती उठती जाती,
फिर भी मैं चलती जाती,
उत्साह, उम्मीद के पंख लगा,
अपने सपनों के गगन में उड़ती जाती!
-