उसने कहा "बेबाक़ अंदाज़ में कुछ भी कह जाते हो, तुम बड़े बदतमीज़ हो।"
हमने मुस्करा कर कहा "बात ये है कि दवाई कड़वी ही होती हैं, जानती हो?"-
झूठी खुशियों के आस मे हो
जाने किस गम के तलाश में हो।
तुम क्यों ढूंढ रहे हो सुकून आखिर
अब मान भी लो की शहर के पास मे हो।
खून बहाते हो आँसू में पानी के बदले
और कहते फिरते हो की गहरे प्यास मे हो।
कुछ सच्चे रिश्ते क्यों नही बना लेते साहब
आखिर क्यो मोबाइल के मोहफास मे हो।
आओ कभी जमीन पर तो ऐहसास होगा
काँटा कैसे दिखेगा, तुम तो आकाश मे हो।
धूप भी शीतल लगती है पर तुम क्या जानो
तुम तो अपने वही ac वाले आवास मे हो।
आईना खरीद क्यों नही लाते घर अपने
आखिर तुम भी उसी अंधविश्वास मे हो।
झूठे उजाले की चकाचौंध में गुम हो साहब
इसे अंधेरा कहते है, तुम जिस प्रकाश मे हो।
लो अब कह ही देता हूँ, जो सुन न पाओगे
तुम ज़िन्दा हो साहब लेकिन एक लाश मे हो।
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किसी को याद रही मैं, किसी ने भूला दिया।
ये जो मैं खुद को बर्बाद कर रही हूँ
जिसने भूला दिया, उसको क्यों याद कर रही हूँ मैं ।।-
अगर तुम्हे भी मुझसे ईश्क़ है तो
अब खुलकर अपनी रजा दो न।
बस ख्वाहिश सिर्फ इतनी है कि
मुझे अपने माथे पर सजा लो न।
(पूरी कविता caption में पढ़ें..)-
जुगनुओं से कह दो, कही और चले जायें
यह शहर जल रहा है, अब अंधेरा नही होगा।
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मेरी तरह तुम भी बिखर सकते हो क्या?
रहने दो,
तुम हादसों के मामले में गरीब हो शायद।-
सुना है
आजकल ज्यादा ही मुस्कुराने लगे हो,
पुनीत तुम भी
बर्बादियों के करीब जा रहे हो क्या !!!-
ख़ामख़ा मेरे शायरी में तलाश रही हो खुद को,
जो दिल पर लिखा हो उसे कागजो में नही ढूँढते।
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मै दर्द की सेज पर सतायी जाती एक जिंदा स्त्री,
तुम फूलो की सेज पर बैठी पूजी जाती एक देवी।
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मुझे अपने ही खुदा के खिलाफ होना है,
मेरे परेशानियों का सबब गैर क्या जाने।
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