"बूझो तो जाने"
कहते हैं कि
सच तो अखबार से आता है।
और आजकल
अखबार सरकार से आता है।
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डॉक्टर इंजीनियर सब छोड़, इन्सानियत में करियर बनात... read more
रिश्तेदारों में शोर है कि
लड़का तरक्की कर गया
शहर में एक घरौंदा खरीदा है।
और सच ये है कि
गांव के खुले आसमान को बेच कर
शहर में एक बंद खिलौना खरीदा है।-
आओ मिलकर ठीक कहें
झूठ को हम, सिर्फ झूठ कहें।
गरीबों को मारती नीतियों को
सब हिम्मत करके लूट कहें।
आओ मिलकर...
थोड़ा सच के साथ सोचना होगा
चिल्लाते झूठ को टोकना होगा।
ये मजहब वाले खेल को अब
मजबूती के साथ रोकना होगा।
चंद झूठे प्रपंचो से न
समाज मे कोई फूट पड़े।
आओ मिलकर ठीक कहें
झूठ को हम, सिर्फ झूठ कहें..
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हादसा ये नया नहीं है,
पहले भी अपने मारे जाते थे।
आज शरीर को मारा जा रहा,
कल सपने मारे जाते थे।
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धर्म का अस्तित्त्व जब मानवता से दूर
धंधा और कारोबार वाला हो जाएगा।
तब मनुष्य का कीमत भी इंसान नही
कीराने के सामान वाला हो जाएगा।
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ऊँची ऊँची इमारतों के इस समुन्द्र में
न जाने कितने सपने और ख्वाब डूब गए।
या कहें तो रखा गया उन्हें वंचित
सुर्य प्रकाश रूपी उम्मीद से
और स्वच्छ हवाओं रूपी जीवन से,
इसलिये ये जान पड़ता है कि
ये सारे ख्वाब और सपने डूबे नही
बल्कि उन सारे ख्वाब और सपनों को
हक़ीक़त के उस किनारे पर
पहुँचने से पहले ही
डूबा दिया गया है।
हमारी सामाजिक संरचना गुनहगार है
इतने सारे ख्वाबों के कत्ल का।
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मुझे शोर नही चाहिए
मुझे कुछ और नही चाहिए,
बस चुपके से
इन हथेलियों के रास्ते
दिल तक पहुँचना हैं।
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प्रिय मित्र,
पुनीत राजा "बेबाक"
विषय:- अपने अंदर के लेखक से
अजनबी होता मै, अपने ही कलम
और शब्दों से वफ़ा नही कर पा रहा।
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(पूरा खत अनुशीर्षक में पढ़ें)
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तुम्हारा उलझा हुआ मित्र,
पुनीत — % &-
मै शराब लेकर आया था,
वह नशा लेकर आयी थी।
रात का भारी होना लाजिम था।।
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तब:-
मै रंग था, वह सादा कागज थी
दोनो का मिलना एक हादसा था।
जब:-
मै उसमे घुलता गया,
वह मुझमे रमती गयी।
अब:-
मै खत्म हो गया,
वह रंगीन हो गयी।
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