कभी सोचता हूँ
कभी भूल सा जाता हूँ
कि बेंगलुरु छोड़
कहीं और चला जाता हूँ।
फिर डर लगता है कि
बेंगलुरु की बारिश
कहीं साथ ना आ जाये।
एक ही तो अच्छी चीज़ है
इस शहर में, मेरे जाने से
कहीं वो भी ना चली जाये।-
बेंगलुरु — एक ग़ज़ल
यह शहर मुझे कभी बुरा तो कभी अच्छा सा लगता है
कभी एक बुज़ुर्ग तो कभी एक छोटा बच्चा सा लगता है
दिल्ली के दिल के वायदे, मुंबई के तेज़तरार कायदे से दूर,
माना बहुत बोरिंग है पर बेंगलुरु मुझे सच्चा सा लगता है
एक भी दोस्त नहीं थे जब आया था मैं इस नर्म शहर में
अब हर दूसरा शक्स यहाँ bro या तो macha सा लगता है
नौकरी के अलावा इस शहर ने शायद ही कुछ दिया होगा
यहाँ का इश्क़ भी अधपका सा थोड़ा कच्चा सा लगता है
इससे अच्छा इस शहर से दूर क्यों नहीं चले जाते, हर्ष?
बेंगलुरु arranged marriage जैसा गच्चा सा लगता है।-
मौसम इतना हसीं है,
सभी इस बारिश में
भींग कर चल रहे है,!
और इक हम है,
यादों की बारिश में,
भींग कर जल रहे है,,!!-
"नम्मा बेंगलुरु"
पंछियों के कलरव से जहाँ होती है भोर,
बताओ धरती पर कौन सा, फूलों की बगिया का वो छोर।
फिज़ाएँ ओढ़ती रंगीन फूलों की ओढ़नी खुशबू बिखेर चारों ओर,
उल्लास उमंग छा जाती है, नाम है शहर का बैंगलोर।
रास्ते पर स्वागत द्वार सजाते, तरू झूम-झूम करते शोर,
खुशनुमा हवाएँ कभी राहत देतीं, सिहर जाता बदन आजमाती जब जोर।
देखा नहीं होगा कहीं ऐसा,घटाएँ जादू सी आती घनघोर,
सम-शीतोष्ण ताप रहता बरस भर, यूँ ही नहीं कहते सब चितचोर!
पूरी शीर्षक में-
की जैसे दूसरे की बाइक पर हम हौंक भरते हैं,
या फिर होटल के तकिये चादरों में पैर धरते हैं,
कभी चिंता नहीं रहती की सोफा टूट जाएंगे,
कभी साबुन चुरायेंगे कभी कुछ लूट लाएंगे,
जले, जलता रहे कश्मीर हो या बेंगलुरु हो,
कोई कमलेश हो या फेसबुक से ये आग शुरू हो
लगा दें आग जो खोले जुबा आजाद भारत मे
मिला दें खाक में उनको जो हो उनकी खिलाफत में
इन्हें परवाह नही की किसका घर जला आये
किरायेदार हैं इनका मकान थोड़ी है।
हमारा खून है शामिल यहां की माटी में,
की इनके बाप का हिंदुस्तान थोड़ी है।-