Abhinit onam   (©ओनम की क़लम से!)
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इक आरज़ू हूँ मैं हर किसी के लिए!
Joined 21 January 2018


इक आरज़ू हूँ मैं हर किसी के लिए!
Joined 21 January 2018
15 HOURS AGO

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YESTERDAY AT 0:09

उलझनों ने बेखूबी सिखाया है,
तब जीने का हुनर आया है,,!!

ख़ैर, यहां सब मोह माया है,,!!

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2 AUG AT 23:31

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26 JUL AT 20:43

समर्पण से बढ़कर नहीं कोई दर्पण,
जिसमें प्रेम देखे अपना स्वयं का प्रतिबिंब,,!१!

न चाहत में सौदा, न अपेक्षा की रेखा,
बस मौन में भी बोले, वह अंतः की लेखा,,!!२!!

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13 JUL AT 21:04

You gave your all, expecting none,
In hearts you lit, like the sun,!!
Yet when it breaks, they point at you,
The one who loved with love most true,,!!

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13 JUL AT 20:39

यदि स्त्री बन जाती बुद्ध,
तो यह संसार
बुद्ध की समाप्ति नहीं ,
बल्कि बुद्धत्व का
नया आरंभ होता,!

वो यशोधरा बनकर
बुद्ध को नहीं पालती,
बल्कि स्वयं बोधिसत्व बन
करुणा और चेतना का
स्त्रोत बन जाती,,!!

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13 JUL AT 20:20

दो राहों पर ज़िंदगी थमी सी खड़ी,!
एक तरफ़ यादें, दूसरी तरफ़ ख़ुद से लड़ाई बड़ी,,!!
कदम रुक गए हैं, दिल कुछ कहता नहीं,!
कौन सी राह चुनूं, कुछ भी साफ़ दिखता नहीं,,!!

हर मोड़ पर उसकी आवाज़ गूंजती है,!
हर खामोशी में उसकी आहट मिलती है,,!!
पर क्या ये प्यार अभी भी ज़िंदा है,!
या बस बीते लम्हों की परछाईं जैसा है?

कभी लगता है फिर से सब शुरू कर दूँ,!
हर जख़्म को मिटाकर, नया सफ़र भर दूँ,,!!
कभी लगता है ये किताब ही बंद कर दूँ,!
जिसमें मेरा दिल, हर बार हारा है, ये डर दूर कर दूंँ,,!!

दो राहों पर खड़ा हूँ मैं आज भी,!
ना पीछे जाना चाहता, ना आगे बढ़ पाता अभी,,!!
बस चाहता हूँ कोई एक संकेत मिले,!
कि जिस राह पर चलूं, वहाँ सुकून मिले,,!!

प्यार के पन्नों को पलट कर देखूं,
या फिर नई कहानी में खुद को ओनम लिखूं?
वो हँसी, वो आँसू, सब कुछ है जहन में,!
पर अब आगे क्या हो, ये सवाल है मन में,,!!

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13 JUL AT 9:56

शिकायतों की ढेर लगी है हर किसी के पास,!
हर लब पे किस्सा है बीते हुए हर एहसास,,!!
हर कोई कहता है, "मैं ही हूँ दुखियारा,"!
पर किसी ने देखा नहीं, सामने वाला भी बेचारा,,!!

हर रास्ता टूटा-फूटा, पर मंज़िल की आस है,!
हर दिल में तन्हाई है, फिर भी दिखावा खास है,,!!
किसी को मंज़ूर नहीं, थोड़ी सी भी हार,!
हर कोई छिपाए फिरता है भीतर का हर वार,,!!

मैं सोचता हूँ — क्यों न रुक जाऊँ, इस दौड़ से बाहर,!
जहाँ शिकायतों की होड़ है, लोगों का बस वहीं पर ठाहर,,!!

क्यों न जी लूं वो क्षण, जो शांति से बीते,!
हर पल में ढूंढूं मैं खुद को, बिना किसी रीते,,!!
मुझे इस होड़ में शामिल होने से क्या हासिल,!
जब हर कोई सही है अपनी ही मंज़िल,,!!

ना तुम ग़लत, ना मैं सही — बस सोचें ज़रा,!
हर नज़र के पीछे है कोई नई धरा,,!!
तो चलो छोड़ दें शिकवे, गिले और घाव,!
बाँटें थोड़ा सुकून, प्यार और थोड़ा सा भाव,,!!

क्योंकि अंत में रह जाती है बस एक बात,!
क्या हमने जिया, या ओनम सिर्फ गिनते रहे दिन-रात?

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23 JUN AT 23:17

किसी के पूर्ण रूप से
समर्पित होने का कभी
इतना भी फ़ायदा मत उठाना,!
कल को तुम्हें सिर्फ़ पछतावे के
अलावा कुछ और हाथ न लगे,,!!

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22 JUN AT 22:05

मतलबी दुनियां से दूर,
सिर्फ़ इक जगह हैं,!
जहां टूटने की भी
इजाज़त हैं -
वो है तेरी बाहों में,,!!

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