जब से खोला आपने ये ढाबा,
हर रोज यहाँ हम आते हैं,
ख़यालों के पुलाव पकाते हैं।
दूसरों के व्यंजन खाते हैं,
अपना भी उन्हें चखाते हैं।
प्रिय योरकोट बाबा,
मस्त चल रहा है ढाबा,
रोज नये नये लोग आते हैं
पका, अधपका पचाते हैं।
प्रिय योरकोट बाबा,
स्वीकार करो ये चढ़ावा
करना न बन्द ये ढाबा
ठिकाना नहीं कोई इसके अलावा-
12 SEP 2020 AT 12:56
10 OCT 2020 AT 9:10
"बाबा का ढाबा" एक मिसाल बन गए..
ढलती हुई उम्र में तजुर्बा बेहिसाब दे गए..
न हारे अपनी उम्र से..
हिम्मत और हौसला बेसुमार दे गए..
अरे! कौन कहता है?
थक जाते हैं क़दम और हिम्मत बुढ़ापे में...
देखो! वे 80 की उम्र में...
अपने मेहनत, लगन से..
देश में कैसे अपना नाम कर गए...!-
10 OCT 2020 AT 3:03
गर्दिश तोह पूरी राह उसके साथ चली थी,
वो थमना नहीं जानता था हारता कैसे..-