Ashish John   (Adeeb)
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ज़ुबान खींचले, तू हांथ काटदे दुनिया!
' अदीब ' सांसो से अपनी हवा में लिखदेगा!
Joined 25 June 2018


ज़ुबान खींचले, तू हांथ काटदे दुनिया!
' अदीब ' सांसो से अपनी हवा में लिखदेगा!
Joined 25 June 2018
20 JAN 2022 AT 13:48

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18 JAN 2022 AT 0:23

जो मेरी आँख में रवांँ था, जाने कौन था?
जो इस ज़हन की बेड़ियां था, जाने कौन था?

उसने कहा था कल की मुझे भूल जाइये
मैं अब तलक ये सोचता हूं, जाने कौन था ?

दो दिन से जैसे दिल ये मेरा हल्का होगया
एक संग सा पड़ा हुआ था, जाने कौन था ?

अब दिख रहे हैं आसमां के सारे रास्ते
जो गहरी धुंध की तरह था,जाने कौन था ?

के शीरीं होगई है फ़िर से शायरी मेरी
जो इस जबां की तल्खियां था, जाने कौन था?

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6 JAN 2022 AT 23:42

इस दौलत पर बिकजाने वाली दुनिया में
मैं एक पसंद का रिश्ता नही खरीद सका

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5 JAN 2022 AT 16:11

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5 JAN 2022 AT 14:31

ज़ीस्त में अगर हमारी ग़म नहीं रहे
हम हमारी नज़र में फिर हम नहीं रहे

काग़ज़ में निशान कैसे खींचेगा 'अदीब'
दिल में ही अगर कोई ज़खम नहीं रहे

गर्म हवा से झुलस गए हैं वोह दरख़्त
जो तन के तोह खड़े हैं मगर नम नहीं रहे

मुत्मइन हो तुम बधाई हो तुम्हें
हमारे लिए कम हैं पर जो कम नहीं रहे

है बदनाम ज़माने में मेरी तल्ख़ ज़बानी
कही सदाक़तें तो मोहतरम नहीं रहे

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2 SEP 2021 AT 15:15

प्यास बुझ भी ना पाई और दरिया ख़त्म होगया
एक ही बार में हर एक मसला ख़त्म होगया

रात लंबी है इतनी की सुबह से मिल नहीं पाए
नींद टूटी ही नहीं और सपना ख़त्म होगया

निकलते वक़्त सोचा था की बहुत दूर जाएंगे
अचानक से ना जाने कैसे रस्ता ख़त्म होगया

मुकम्मल हो नहीं पाई ग़ज़ल-ए-ज़िन्दगी मेरी
की म़क़ता लिख़ने से पहले ही पन्ना खत्म होगया

मैं तोह अब जारहा हूं यारों को भी अलविदा कहकर
मेरे दुश्मन मेरा तुझसे भी झगड़ा ख़त्म होगया

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9 JUL 2021 AT 18:32

जिस शख़्स के हिस्से में तू आयेगा!
वोह शख़्स भी शाहों में गिना जायेगा!

मेरे मिट्टी के घर में हुस्न की गरीबी है!
की मुझसे तू खरीदा ही नहीं जायेगा!

की ये ख़्याल मेरे ज़हन को जलाता है!
कोई होगा जो तुझे छूके पिघल जायेगा!

रब-ओ-रकीब फिर तोह दोनो से ही जंग होगी!
तौर-ए-ईनाम पे जब तुझको रखा जायेगा!

जो तुझे पायेगा उसको ख़ुशी से मरना है!
जो तुझे खोएगा वोह कौनसा जी पायेगा!

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7 JUL 2021 AT 15:42

ये ना सोचना तुझसा कोई दूजा नहीं था!
हकीक़त ये है की हमने कभी ढूंढा नहीं था!

मैं क्या करता दानाई ये तेरी चाहत में बंद थी!
की सब सोचा था मैंने बस यही सोचा नहीं था!

अना तेरी तेरे नखरे मुझे लगती थी जाना!
की आंखें थी मगर कैसे कहूं अंधा नहीं था!

ये दिल टूटा था पहले भी तेरे हाथों से लेकिन!
ये तुझसे इश्क़ का जज़्बा था जो टूटा नहीं था!

और उम्मीद ही ना थी मेरे बचने की यारों!
की गुलदस्ते में था खंजर छुपा देखा नहीं था!

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6 JUN 2021 AT 19:52

दश्त में सोने का महल लिख रहे हैं हम!
हिज्र में कुरबत की ग़ज़ल लिख रहे हैं हम!

अश्कों से दिल की ज़मीं कीचड़ सी होगई!
देख इस कीचड़ में कमल लिख रहे हैं हम!

चल रहा है वैसे तोह दर्दों का सिलसिला!
और सिलसिले में खलल लिख रहे हैं हम!

तेरी बेरुखी बड़ी नकली सी लगी थी!
इश्क़ है असल तोह असल लिख रहे हैं हम!

ज़ुल्म है तुमने किया दोनो के दिलों पर!
इसलिए दोनों पे फ़ज़ल लिख रहे हैं हम!

तूमने किया अमल है गै़रियत का फैसला!
इसमें अपना रद्दे अमल लिख रहे हैं हम!

और चाहे कितना लिखलो राबतों का अंत तुम!
हर बार मोहब्बत की पहल लिख रहे हैं हम!

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6 JUN 2021 AT 19:48

सूना फलक है कोने में चांँद सितारे रखे हैं!
फ़र्ज़ रखा सिरहाने में ख़्वाब किनारे रखे हैं!

बेफुरसत हैं, दर्द-ओ-खुशी दोनो में हंस देते हैं!
वक़्त बचाने को हमने एक जैसे इशारे रखे हैं!

सब रखते हैं मेरा दिल पिंजरे को जन्नत कहके!
उनकी खातिर हमने भी पंख उतारे रखे हैं!

कितना शोर मचाते हैं इन भेड़ों के झुंड यहां!
हमने भी करके खामोश शेर हमारे रखे हैं!

और हम ही अकेले थोड़ी हैं ज़रूरतों के मंदिर में!
बाहर देखो जूते चप्पल कितने सारे रखे हैं!

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