भोजपत्र पर लिखा संदेश, मयूरपंख से अंकित किया,
कुमकुम से सुवाहित कर, वो प्रेमपाती तुमसी हुआ!
दूर देश की रिहायश तुम, मिलना तुमसे जब दुष्कर था,
श्वेत कपोत संदेशवाहक से, मनेच्छा का तब भान हुआ!
साक्षात दर्शन का अभिलाषी हूँ, अंतर्मन भी व्यथित है,
मेनका सी छायाचित्र तुम, मैं विश्वामित्र सा द्रवित हुआ!
श्रावण में तपन तन मन, विरह अगन ने संताप किया,
मेघ मल्लाहर प्रेम का बरसा प्रेयसी सा अंगीकार हुआ!
कृष्ण निशा में शशि यूँ, तुम धूमकेतु सा आभाष दिया,
मिलन का निश्चय संकेत था, पर प्रतीक्षा का भाष हुआ!
ऋषि की किसी पांडुलिपि में, हमारा प्रेम व्याख्यान था,
वो अब श्लोक प्रेम स्तुति, जो हर प्रेमी का वरदान हुआ!
कालचक्र तो गतिशील था, उस युग में ना मिल सके हम,
हम होंगे अवतरण फिर से धरा पर, मन को विश्वास हुआ! _राज सोनी-
26 MAY 2020 AT 8:14
19 JAN 2020 AT 21:28
जब बरसात की
पहली आवाज़ मेरे
कानों को सहलाती है
मैं तुम्हें याद करता हूँ।
जब प्रेमिका अपने
प्रेमी को बड़े
प्रेम से बहलाती है
मैं तुम्हें याद करता हूँ।
जब कोई और
मुझे प्रेम का
प्रस्ताव लाता है
मैं तुम्हें याद करता हूँ।
वैसे तो भूल चुका हूँ
मगर, जब किसी
ग़ैर की बाहों में होता हूँ
मैं तुम्हें याद करता हूँ।-