Ujjwal Raj   (Ujjwal Raj "अमन")
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Joined 24 June 2017


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Joined 24 June 2017
15 MAR 2022 AT 17:17

प्रेम में प्रेमी तोहफ़े नहीं देते,
आप देते हैं सिर्फ निशानियाँ..!!

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16 FEB 2022 AT 12:46

इतनी क़ुरबत के बाद बिछड़ना ज़रूरी था
एहसासों को एहसासों से मुकरना ज़रूरी था

रफ़ीक़ के वास्ते ही सारे शेर क्यों पढ़े जाये
रक़ीब के कूचों से भी गुज़रना ज़रूरी था

दिलगीर है ज़ेहन तो ये तमाशा क्या है
ख़ुमार-ए-मय भी तो उतरना ज़रूरी था

नकीदों के हँसी से क्यों नाराज़ हो हम
तमाशा अच्छा या बुरा कर गुज़रना ज़रूरी था

पहुँचा कर उन्हें फ़िरदौस के दर पर "उज्जवल"
दोज़ख़-ए-आग में भी जरना ज़रूरी था

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2 NOV 2020 AT 7:36

एक ही मर्ज़ के सताए हम तुम,
चलो दूर कहीं रो आये हम तुम

दवा के इंतजार में क्यों बैठे रहें,
एक दूसरे की दवा हो जाये हम तुम

दुनिया ढूंढती है कोई नया तमाशा,
इस दुनिया के हाथ न आये हम तुम

सदियों इंतज़ार में जगी है आँखे हमारी,
अब अपनी आँखें मूंद सो जाये हम तुम

लोग देखें तो देखते रह जाए "उज्जवल"
एक दूसरे पर यूँ फ़ना हो जाएं हम तुम..!

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11 AUG 2021 AT 18:54

सारी रात सड़कों पर जिस्म को तन्हा गुजार कर,
दरवाजा खटखटाया मैंने अपना ही नाम पुकार कर

अपने आस्तीन से ढक लेता हूँ जिस्म का रोयां रोयां मैं,
वो नुमाइश करता है वफ़ा का अपने ज़ख्म उभार कर

क्यों इस तरह से मिल रहे हैं मुझसे मख़मली चेहरे वाले,
इनसे कोई कह दो की मुझसे बात करे नकाब उतार कर

उन्हें अपने अना की इतनी फ़िक्र रही है "उज्जवल"
मेरे जनाज़े में भी वो आये तो अपना चेहरा संवार कर!!

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27 JUN 2021 AT 9:37

मैं बंजारों की बस्ती का शहजादा था,
इक घर की चाह में अब क़ैद हो गया।

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4 MAY 2021 AT 12:18

डूबने लगा था तिनका भी नदी में,
हम तब भी उम्मीद में थे बच जाने के।

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15 APR 2021 AT 21:08

जवान दोपहर में देखा है करामात ऐसा,
चाँद आया था मुझे देखने मुंडेर पर अपने।

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15 FEB 2021 AT 20:24

मैं पढ़ता हूँ छोटी बड़ी
तमाम कहानियाँ,
जिनके किरदारों में
ढूंढने लगता हूँ
कोई हिस्सा तुम्हारा,
कभी एकाध मिल जाता है
पर वो नहीं होता संपूर्ण,
जैसी पूर्णता है तुममे
मैं बन्द कर के रख देता हूँ,
उन कहानियों की किताबों को
और पढ़ने लगता हूँ तुम्हे..!!

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17 JAN 2021 AT 14:20

जब आहिस्ता आहिस्ता सूरज
जाएगा गोद में चाँद के,
मिटा देने को अपना अस्तित्व
कर देने चाँद को सम्पूर्ण,
उस वक्त में हम तुम,
सूरज और चाँद होंगे...!!

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17 DEC 2020 AT 16:57

इंकार में भी कितना मोहब्बत है तुम्हारे,
तुम जब नाराज़ होते हो तो ये मालूम चलता है।।

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