ये आंधिया है,आती है,जाती है,
इनमे कोई ठहराव नही है।
खुद को छिपा लेना
इस तरह का कोई बचाव नही है।
मगरूर दरख्तों के नीचे क्या खड़ा है!
वहां कोई छांव नही है।
तू हिम्मत रख,चलता रह,ये खरोंचे है
कोई नासूर घाव नही है।
बदलाव तो प्रकृति का नियम है,
यह कोई बुरा बर्ताव नही है।
खुदा का नियम सब पर समान है,
वहाँ कोई भेदभाव नही है।-
ना जाने कितनी रातें चांद को देख , बितायी है
गलती महबूब की वो क्यों झरोखों पे आई हैं ।।
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सर्दी में बारिश, ये मौसम ही रूहानी है
जरा बच के इसकी हरक़त जिस्मानी है-
कभी समता है, विषमता है
शोलों से बर्फ़ ना जमता है
अंगारे भड़के जब दिल में,
आलसमय बर्फ़ पिघलता है
दुनिया देखेगी, एक प्रयागी लक्ष्य में कैसे जलता है !
मैं बतला दूंगा सबको, बस एक अवसर की ही प्रतीक्षा है...
साबित कर दूंगा खुदको, ये जीवन इक बड़ी परीक्षा है...
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टक्कर इतनी जबरदस्त थी की होश उड़ गए
ये गुरूर,रुतबे और फरेब के तो परखच्चे उड़ गए
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धरती सुखी कराह मे, तो बादलों ने गर्जना कर दी....
आसमां ने उठाया समन्दर और भीषण बरसात कर दी
तमस में कड़कती बिजलियों ने हुंकार भर दी....
उठ चले आंधी,भूचाल,सुनामियों ने ललकार कर दी
कुदरत का हुआ कोहराम चारो तरफ हाहाकार कर दी...
पल भर में उन्मादित इंसानो को उनकी औकात दिखा दी
इंसानो को उनके ही कुकर्मों ने शर्मसार कर दी.......
बेबस बेचारो ने त्राहीमाम! त्राहिमाम! पुकार कर दी
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वो बड़े ही ध्यान से
उस "लकड़ी" को देख रही थी
जो उसकी ही जैसी "सुलग" रही थी
एक सरसराहट थी
दोनो की "धधक" बढ़ा रही थी
मध्दम सी "बयार ए इश्क़" चल रही थी
रात की खामोसी गवाही दे रही थी
खुद की ही "साँस" सुनाई दे रही थी
जो "जाहिर" नही वो दिखाई दे रही थी
वो मध्दम सी हवा
रह रहकर "तूफान" बन रही थी
लकड़ी में भी
सुलगते सुलगते "चिंगारी" फ़ूट रही थी
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