नदी
मिट्टी के साथ
एक सफर तय करती है
तब कहीं जाकर रेत पैदा करती है-
बहता लहू लावा बना कर
सींच दे धरती को तपाकर
है रक्त पिपासु यह बंजर भूमि
रक्त रंजीत का पारावार कर।
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है मिरी आरजू की मैं उसकी एक तस्वीर बनाऊं
कई रूप है उसके पूछती है किस रूप में आऊं-
जो नही है उससे लगाव बहुत है
और जो है उसके भाव बहुत है
सपनो की दरिया उफान पर है
पतवार नही है पर नाव बहुत है
डरता है दिमाग अपनी उम्र को लेकर
दिल बेजुबान है पर जवां बहुत है
घर की तुलसी अपने पड़ाव पर है
अब भी उसके आंचल में छांव बहुत है
वो कायनात मदहोशी लिए फिरती है
लोग हमे कह रहे की रंगबाज बहुत है
अच्छा सुनो!मिलते है कभी उसी टपरी पर
आज भी वहां की चाय दमदार बहुत है
.........याद बहुत है-
वो आग है! उसे ये तनख्वाह मत दे
अरे पागल! तूफान को पंखा मत दे
परवाज की खामोशी तक दिखती है
वो बाज़ है! उसे अब मचान मत दे
दे, अगर दे सकता है तो ये जान दे
वरना जाने दे उसे अब जबान मत दे
हर कत्ल में कातिल ही शातिर नही
अब नादान मत बन ये सुराग मत दे
कुछ है जेहन में तो क्या और क्यूं है
जिंदगी है तेरी दूजे को लगाम मत दे
सफर है मंजिल है बस तू इरादा कर
खुद पे लगा बाजी किसी पे शान मत दे-
मुसाफिर है और गुमराह भी है
फिर तो वो कतई खतरनाक है
उसकी आंखो में सारे जवाब है
पढ़ लेना वैसे पूछना तो बेकार है
मुस्कराकर भी बयां नहीं करेगा
उसे मालूम है की सब बाजार है
वो देख कर बता देता है नस्ल को
कौन शेर और कौन रंगा सियार है
एक उम्र गुजार दी उसने सफर में
हालातो को पिया एक तजुर्बेकार है-