Atul Giri   (" प्रयागी ")
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Joined 22 April 2018


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14 JUL 2021 AT 12:15

मुसाफ़िर



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12 JUL 2021 AT 20:11

है मिरी आरजू की मैं उसकी एक तस्वीर बनाऊं
कई रूप है उसके पूछती है किस रूप में आऊं

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28 JUN 2021 AT 18:23

आखिरी जंग

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5 JUN 2021 AT 10:35

Paid Content

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23 MAY 2021 AT 20:32

नदी
मिट्टी के साथ
एक सफर तय करती है
तब कहीं जाकर रेत पैदा करती है

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19 MAY 2021 AT 15:51

जो नही है उससे लगाव बहुत है
और जो है उसके भाव बहुत है

सपनो की दरिया उफान पर है
पतवार नही है पर नाव बहुत है

डरता है दिमाग अपनी उम्र को लेकर
दिल बेजुबान है पर जवां बहुत है

घर की तुलसी अपने पड़ाव पर है
अब भी उसके आंचल में छांव बहुत है

वो कायनात मदहोशी लिए फिरती है
लोग हमे कह रहे की रंगबाज बहुत है

अच्छा सुनो!मिलते है कभी उसी टपरी पर
आज भी वहां की चाय दमदार बहुत है

.........याद बहुत है

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18 MAY 2021 AT 17:56

बाटी - चोखा






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9 APR 2021 AT 18:16

वो आग है! उसे ये तनख्वाह मत दे
अरे पागल! तूफान को पंखा मत दे

परवाज की खामोशी तक दिखती है
वो बाज़ है! उसे अब मचान मत दे

दे, अगर दे सकता है तो ये जान दे
वरना जाने दे उसे अब जबान मत दे

हर कत्ल में कातिल ही शातिर नही
अब नादान मत बन ये सुराग मत दे

कुछ है जेहन में तो क्या और क्यूं है
जिंदगी है तेरी दूजे को लगाम मत दे

सफर है मंजिल है बस तू इरादा कर
खुद पे लगा बाजी किसी पे शान मत दे

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2 APR 2021 AT 14:43

मुसाफिर है और गुमराह भी है
फिर तो वो कतई खतरनाक है

उसकी आंखो में सारे जवाब है
पढ़ लेना वैसे पूछना तो बेकार है

मुस्कराकर भी बयां नहीं करेगा
उसे मालूम है की सब बाजार है

वो देख कर बता देता है नस्ल को
कौन शेर और कौन रंगा सियार है

एक उम्र गुजार दी उसने सफर में
हालातो को पिया एक तजुर्बेकार है

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11 MAR 2021 AT 20:32

प्रयागी पिनाका
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( रचना अनुशीर्षक मे )

महाशिवरात्रि
११/०३/२०२१

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