कोरा काग़ज़ समूह एक बार फिर लेकर आया है कुछ अलग और कुछ नया। आप सभी जो समूह से इतनी अच्छी तरह जुड़े हुए हैं और अपने लेखन में सुधार हेतु निरंतर लिखते आ रहे हैं। आप सभी की इस लगन को देखते हुए कोरा काग़ज़ समूह ने एक फैसला किया है कि अब हर महीने की 10, 20 और 30 तारीख को एक विशेष प्रतियोगिता का आयोजन होगा जो मुख्य प्रतियोगिता से अलग दी जाएगी (फरवरी में केवल दो 10 और 20 को)। इस प्रतियोगिता का एक विजेता होगा जिसको एक साल का प्रीमियम सबस्क्रिप्शन उपहार स्वरूप दिया जाएगा। तो अब हर महीने तीन लेखकों को एक साल का प्रीमियम सबस्क्रिप्शन पाने का सुनहरा अवसर मिलेगा। लिखते रहिए, शुभकामनाएँ :)
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कोरा कागज़ टीम और आप सभी yq परिवार वालों को मैं दिल की गहराइयों से धन्यवाद ज्ञापित करता हूँ। सादर 🙏
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वो एक रात की रानी हो जैसे
परीयों की कोई कहानी हो जैसे
कभी गुपचुप - गुमसुम सी तो
कभी मचलते दरिया का पानी हो जैसे
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पड़ी है बेड़ियां जीवन में संस्कार की।
निभाती है हर नारी इसे जी जान से।
नन्ही टहनी सी हूँ मैं इस संसार रूपी
विशालकाय पेड़ की।।
ना मैं नाज़ुक ना ही गुलाब हूं मैं कहीं
की ना अफताब हूं ना मैं चाॅंद हूं।।
स्त्री हूं मैं, मैं नारी हूं अतीत के पन्नों की
भी एक कहानी हूं।-
सूरज को उगते और ढलते तो देखा है सबने।
चाॅंद की चाॅंदनी को रात भर देखा है हमने।।
मेरी बदनाम महफ़िल वो बड़े - बड़े भी आ गए, हमने
अपनी आँखों से बड़े - बड़े इज्ज़तदार बदलते देखे है।।-
पतंग यूं उड़ी
दिल की डोर बांधकर पतंग ऊंचे आसमां में उड़ी।
भरकर उमंग अपनी उड़ान में मेरे मन को लुभा गई।।
पतंग यूं उड़ी सब लोगों के मन में ख़ुशी बिखेर गई।
काश मैं भी उड़ जाऊं ओढ़कर सतरंगी चूनर।।
इन्द्रधनुष जैसी वो है सतरंगी रंगो में है रंगी।
दुबली पतली उसकी काया है, बलखाती हुई
उड़ती नील गगन में, होड़ लेकर उड़ जाती है,
ना किसी से मतलब रखती, दुनियादारी से
कोई मतलब ना रखती, अपनी मतवाली चाल
में नाच - नाच कर मन बहलाती, मन में जोश जगाती।
कुछ आहट सी सुनाई दी, जब कटी डोर वो ना हुई
निराश, मस्त मग्न वो गगन में तोड़कर मुझसे सारे
बंधन नील गगन में लहराई और बलखाई।।
जब थक गई उड़ते - उड़ते तब आ गिरी वो
मेरी छत पर, डोरी फस गई पेड़ों में, उतर आई
वो नीचे नील गगन से, कुछ ऐसे उड़ी मेरी पतंग।।-
गुजरते वक़्त की निशानी अभी भी मेरे पास रखी है,
छलकते आँसू ठहराव की रवानी नहीं लेते, यादों का
दरिया और गहरा होता जा रहा है, मौसम-ए-गुल तो अपनी अदाएं बदल रहा है मेरी साॅंस का दरमियान सुधर रहा है।-
माया मोह में लिप्त है सारा संसार, दिखावे की दुनिया तुम्हें
क्या रास नहीं आई, कहॉं चला मानव तू अपनों को बिसराकर।
उम्र-ए-दराज़ की सिर्फ चार दिन की जिन्दगी है सबकी अपनी ही
रवानी है, दो दिन आरज़ू और दो दिन इंतज़ार में कट जायेंगे।।-