आशुतोष श्रीवास्तव "अंजान"   (©️आशुतोष 'अंजान')
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Joined 24 April 2020


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Joined 24 April 2020

हमनें ज़िन्दगी नही जी
ज़िन्दगी के द्वारा
जिए गए हम!
ना की तपस्या ना यज्ञ
लेकिन कर्त्तव्यपथ पर
हुए तप्त हम!
बूढ़ी हुई नहीं इच्छाएं
बूढ़े हुए हम!
जीवन के सबसे महत्वपूर्ण
क्षणो में किंकर्तव्यविमूढ़ हम!
कथानक कहते कहते
कथा रह गई
बीत गए हम!

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काश! मैं न आने वाला कल हो जाऊं,
तेरी परेशानियों का मुक़म्मल हल हो जाऊं।
तू मेरे एहसासों के लम्स से महकें ज़ब भी,
आकर सामने तेरी हिचकियों का खलल हो जाऊं।

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इस आभासी दुनिया में
क़दम क़दम पर
फैले मृग मरिचिका
के मध्य कुछ
वास्तविक और सच्चे
लोगों का मिलना
ठीक वैसा है
जैसे जेठ की
चिलखती दुपहरी में
इंद्रधनुष का दिखाई देना!

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संभव नहीं नापना
दो हृदयों के मध्य की दूरी
मीटर या मीलों में,
हृदयों को मापने की
इकाई तो केवल और
केवल विशुद्ध प्रेम है!!

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अदा हुस्न फरेब इश्क़ को बेशक नज़र चाहिए,

लेकिन हर खूबसूरत चीज़ दीदार के क़ाबिल तो नहीं।

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लबों की प्यास को छुपाना न आया,
जिक्र उसका धुएं में उड़ाना न आया।
ऐसे तो बातों के लिए मशहूर है हम,
मुद्दतों बाद भी हाल बताना न आया।

हर वक्त नजरों में सफ़र है उसका,
मगर आवाज़ देकर बुलाना न आया।
मौसम की कहानी न पूछो तो अच्छा,
घड़ी - घड़ी हमे बदल जाना न आया।

यूं तो मेरी जिंदगी जीने की वजहें है बहुत,
मगर सच ये है मरने का बहाना न आया।
रात से नींद की दुश्मनी रही मुसलसल,
मुझे नींद को ख्वाबों से बचाना न आया।

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बरसातें धूल से भर गई
जेठ की दुपहरी बारिशों से
नदियां रेत से भर गई
और मन इच्छाओं से
है हर कोई रास्ता बदलने को आतुर
क्या प्रकृति क्या इंसान!
अब पपीहे के गीत से बसंत नही आता।

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कली के खिलने पर कविता
गढ़ने वाले उसके मुरझाने पर
अक्सर लिखना भूल जाते है।

चांद की चांदनी पर कविता
गढ़ने वाले उसके ग्रहण पर
अक्सर लिखना भूल जाते है।

सफलताओं के सफ़र पर कविता
गढ़ने वाले पैर के छालों पर
अक्सर लिखना भूल जाते है।

मिट्टी के गुल्लक पर कविता
गढ़ने वाले कुम्हार पर
अक्सर लिखना भूल जाते है।

भूल जाने पर कविता लिखने
वाले कवि अपनी
अक्सर कविता भूल जाते है!!

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भले आंखे चुराओ
तुम्हारे चेहरे के
सिमटते भावों से
तुम्हारे मन की
गोपन कहानियां
मैं पढ़ता रहूंगा।

तुम ज़िंदगी के
कैनवास पर स्वप्नों की
कलाकृतियां बनाती
रहना, उनमे हमेशा
की तरह प्रीत का
रंग मैं भरता रहूंगा।

धूप भले तेज हो
रात भले अमवास की रहे
तुम्हारे मन मे आए
स्याह ख्यालों में भी
एक ढिबरी बनकर
मैं जलता रहूंगा!!
वादा है।

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अपने मन से हार जाता हूं मैं...

मेरी कल्पनाओ से परे ले जाकर
अक्सर मुझें मंजिलो से दूर करवाकर
कभी संभावनाओं को रौंदता
कभी भीतर बिजली सा कौंधता
इच्छाओं को खुद से मार नही पाता हूं मैं,
बस अपने मन से हार जाता हूं मैं।

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