शशि हो तुम शरद की, पूनम है नाम तुम्हारा
खिलाती खीर नहीं हो, यही इल्जाम हमारा
ये शीतल चाँदनी भी,अगन क्यूँ लगा रही है
जल रहा आज मैं क्यों, क्या हो कोई शरारा
तुम भी आ जाओ छत पर, बनाकर कोई बहाना
खिला जो चाँद गगन में, समझ लो मेरा इशारा
बनाकर बादल मुझको, छुपा लो चेहरा अपना
हटा कर घूँघट तुम फिर, दे दो ईनाम हमारा
शरद की तुम शशि सी, पीयूष का पान करा दो
मिले न मिले कभी फिर, मौका ये हमें दोबारा-
# 19-12-2020 # काव्य कुसुम # आत्मिक सुख #
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महापुरुषों के अभ्युदय से जग ज्योतिर्मयी रश्मियों से आलोकित होता है ।
महापुरुषों के प्रवचनों से जीवन पथ पाकर जनमानस सुवासित होता है ।
जीवन में आत्मिक सुख व आलोड़न के लिए महापुरुषों की संगत ज़रूरी है -
महापुरुषों के मुखारविंद से नि:सृत पीयूष प्रवचन प्रवाहित होता है ।
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निसृत - विशेष रूप से उच्चारित। आलोड़न- सोच विचार, मंथन-
# 15-09-2020 # काव्य कुसुम # सपना #
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पके-पके आमों की मानिंद दहकते गालों से नूर बरसता है ।
काले कजरारे तीखे-तीखे अंगूरी नयनों से पीयूष छलकता है ।
गोरी-गोरी संदली सी उनकी बाँहों में प्यार का सपना संजो कर -
उनके प्यार का दीवाना रेशम सी जुल्फों की छाँव को तरसता है ।-
जीवन जटिल और है सरल सा
कभी है कठिन कभी ये तरल सा
अलग अलग हैं अनुभव सबके
कभी ये पीयूष है कभी है गरल सा-
#13-12-2020 # काव्य कुसुम # तन-मन #
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तन-मन में वास तुम्हारा, बेचैनी सुध-बुध सारी खो जाती ।
हो जाता दूर तिमिर सारा, तन - मन का कलुष धो जाती ।
जवाँ रात के सीने पर, जब धीरे - धीरे आँचल लहराता है-
हो जाता प्रमुदित तन-मन, तब हर साँस तुम्हारी हो जाती ।-
# 14-06-2020 # काव्य कुसुम # प्रेम पीयूष #
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कोई ऐसा काम करो जीवन का आनंद लिया जा सके ,
हो जाए जीवन धन्य जीवन को आनंद से जिया जा सके ,
सकारात्मक ऊर्जा से हर वक्त मस्ती में रहो मस्त सदा -
अपनी ही मस्ती में जीवन का प्रेम पीयूष पिया जा सके ।
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सप्त-अश्व-रथ पुलकित भानु पूर्व-दिशा उजियार
पीयूष-पात्र दोऊ हस्त लिए वसुधा पर रहे हैं ढ़ार
कंञ्चन रश्मि दिशा दिगंतर श्रृंगार मिहिका उद्गार
पुष्पित-पल्लवित पौध पात खिलती पुहुप मदार
प्रथम नमन हे न्यायकर्ता प्रत्यक्ष उदयन परिवार
ज्ञान-चक्षु में भर दो भास्कर हम सबके संस्कार-
प्रेम किसी के लिये पीयूष है,
किसी के लिये मदिरा,
किसी के लिये विष
तो किसी के लिये जल।-
लफ़्ज़ों से ना बात पिरो तू
नज़रों से ही ज़ाहिर कर दे।
होंठो से तू होंठ छुआ कर
दो रूहों को ताहिर कर दे।।-
पीयूष किरण ले अंगराई जब बोझिल पलकें खोलती हैं
चिहुंक चिहुंक सारे कुहुक सब एक ही धून में बोलती हैं
कहती हैं हे मनुज जाग अमृतमय दिव्य-रसपान तो कर
क्यों सोकर खोता है यह जीवनोदक रश्मि प्रभा को धर
नीहार से नहाई वसुधा को तू-आ अपलक निहार तो ले
एक चक्कर तनिक तू जाकर मधुवन दृश्य विहार तो ले
नमस्कार-कर देव-प्रत्यक्ष को रुप-गुण अवशोषित कर
या तो अवशोषण हो जा सूर्य के ज्योतिर्मय-मनहर-घर-