(शेष अनुशीर्षक में)
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दुनिया मुझे जो भी कहे
इसकी मुझे परवाह क्या
मुझे तो ये देखना
जीतने की है राह क्या
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मुसलसल दूरियों की तू परवाह न कर
तेरी दी हुई हंसी मैं अब भी पहनता हूँ-
सच्चा इन्सान दुखी इसलिए होता है-
क्योंकि
वो खुद के लिए कम और दूसरों के लिए ज्यादा जीता है !!-
हमसे ऐसी भी क्या खता हुई
जो काबिले माफी नहीं।
तुमको देखा नहीं इतने दिनों से
क्या ये सजा काफी नहीं।-
वो मेरी परवाह नहीं करते..
मुझे इस बात की परवाह नहीं
परवाह इस बात की है कि
वो मेरी परवाह को परवाह नहीं समझते-
उसमें 'चिंता' भी हो, बेइंतहा फ़िकर भी हो और मेरे लिए 'बेपनाह परवाह' चाहिए।
वो कितनी भी समझदार क्यों न हो 'अभि' मुझे 'आशना' एकदम बेपरवाह चाहिए।-
एक साँसें ही है जो परवाह नहीं करती किसी की
कभी उस घर से चली जाती है तो कभी इस घर से-
ये जो परवाह करते हैं मेरी पढ़ने वाले
मैं उन का शुक्र अदा भी नही कर पाता हूँ
मेरी भी एक तमन्ना है सच कहूँ यारो
तुम जो हँसो तो हँसु रोओ तो रोना चाहता हूँ-