दो मैली नज़रों ने
एक फ्रॉक मैली कर दी
एक मैली सोच ने...
जाने दीजिए
न्यायपालिका के विरुद्ध लिखना
न्यायसंगत नहीं है-
जब किसी देश में न्यायपालिका,
कार्यपालिका की खुलेआम प्रशंसा
करने लगे तो समझ लेना चाहिए कि
न्यायपालिका के निर्णय केवल विधि की
आत्मा अनुरूप नहीं होंगे...
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भारत के तीन स्तंभों में से एक स्तंभ, न्यायपालिका को अपने अस्तित्व पर सोचना चाहिए अब शायद!
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तो सामान्य व्यक्ति को भी जमानत मिलनी चाहिए जिस हिसाब से दोषी एवं अपराधी लालू को जमानत मिली है, लेकिन इस हिसाब से सामान्य व्यक्ति को जमानत नहीं मिलती...!
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संविधान भी था, विधायिका भी थी, कार्यपालिका भी थी, न्यायपालिका भी थी, लोकतंत्र भी था, लोकतंत्र के तथाकथित रक्षक जनसंचार माध्यम भी थे किंतु कश्मीरी हिंदुओं के साथ स्वतंत्र भारत में अन्याय हो गया और उसे प्रदर्शित करने वाली फिल्म को रोकने के प्रयास करने वाले लोग आज भी हैं..!
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आज विश्व परिवार दिवस है। सभी को शुभकामनाएं। हमारी विधायिका और न्यायपालिका का परिवार व्यवस्था को छिन्न भिन्न करने में बहुत बड़ा योगदान रहा है। इनके द्वारा इस तरह के नियम बनाए और पालन करवाए जा रहे हैं जो परिवार तोड़ने के अतिरिक्त कुछ नहीं करते हैं। "Marrital Rape" इसी में एक और कड़ी है।
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समय आ गया है की अब न्यायपालिका के अबाधित अधिकारों और असीमित छुट्टियों की समीक्षा की जाए, क्योंकि ये भी सामान्य जन के कर से चलने वाले संस्थान हैं!
#आपको_क्या_लगता_है?-
सरकारों को निरंकुश होने से बचाने के लिए न्यायपालिका बनाई गई लेकिन न्यायपालिका की निरंकुशता कौन समाप्त करेगा..?
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"Government of the people, by the people and for the people"
अब्राहम लिंकन अपनी इस परिभाषा में 'न्यायपालिका' को जोड़ना भूल गए..!-
सर्वप्रथम तो हमारे देश में नेताओं को दण्ड नहीं मिलता है और यदि किसी प्रकार से वे दण्डित हो जाते हैं तो फिर जमानत पर बाहर घूमते रहते हैं..! इसी जमानत के लिए सामान्य नागरिक चक्कर काटते रहते हैं..! इससे बड़ी विडम्बना क्या होगी?
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