कोई औरत न कहलाये कभी बदचलन
यदि आदमी सुधार ले अपने चाल-चलन !!-
हाय करूँ क्या सूरत ऐसी
गांठ के पूरे चोर के जैसी
चलता फिरता जान के एक दिन
बिन देखे पहचान के एक दिन
बांध के ले गया पोलिसवाला!
बूढ़े दारोगा ने चश्मे से देखा
आगे से देखा पीछे से देखा
ऊपर से देखा नीचे से देखा
बोला ये क्या कर बैठे घोटाला
हाय! ये क्या कर बैठे घोटाला
ये तो है थानेदार का साला !!-
अंतर्मन का शोर,
दुनिया के झूठे शोर से जीतना चाहता है,
झुठला देना चाहता है भीतर के द्वंद को,
हाथ छटपटाते है दर्पण के सामने,
नोच लेना चाहते है,
तलाशना चाहते है उस छवि को..
जो खो गई है कहीं मौन के गर्त मे।।
आँखों में आंसू है..मगर ये क्या,
ये प्रतिबिम्ब में अस्तित्व क्यों धुंधला सा है?
ये कैसा एकांत है जो इसमें क़ैद हो गया है?
जो सज़ा काट रहा है निर्दोषता की..
जैसे सारी संवेदनाएं मर गई हो,
झूठ और स्वार्थ के रिश्तों में बनी वो खाईयां..
आभावों की पीड़ा,ह्रदय को आघात पहुंचा रही है।।
और धुंधला प्रतिबिम्ब भी जैसे न्याय कर रहा हो,
सच्चाईयों को अपनाने को कह रहा हो,
विश्वास का टूटना,जीवन को अंधकार से भरता ही है,
अपेक्षाएं रखना गलत नहीं,
पर इस तरह खुद को कष्ट देकर,
नियति को बदला नहीं जा सकता,
इसलिए..
समेट लो हर अनुभव को,
शान्त कर लो इस भीतरी कोलाहल को,
वो अपने,वो प्रेम सिर्फ तुम्हारा था,है,और रहेगा..
उसे होंठों पर नहीं अंतस में रखकर,
सदा के लिए अपना बना लो।।-
इंसाफ मांगने निकला था तुम्हारे दिए जख्मों का,
पर इस शहर में हर कोई तुम्हारा आशिक निकला ।-
"चरित्रहीन"
अगर चरित्रहीन स्त्री को आप अपनी पत्नी नहीं बना सकते
तो यह उम्मीद कैसे कर सकते हैं कि.....
कोई स्त्री किसी "चरित्रहीन पुरुष" को अपने पति परमेश्वर के
रूप में स्वीकार करेगी??
"
"
हम स्त्रियाँ भी किसी चरित्रहीन पुरुष को,
कभी नहीं स्वीकार सकतीं कदापि! नहीं।।-
"अन्नाय" के विरुद्ध बोलना भी
एक बहुत बड़ा "न्याय" करना ही होता है..!!!
(:--स्तुति)
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