खुद के बटुए से दस रुपये चुरा के रख लेता हूँ
ऑफिस के टिफ़िन में पराठा जैम चख लेता हूँ
भागते भागते कहीं मैं दूर तो नहीं निकल आया
माँ पिता को भूला नहीं कुछ ऐसे परख लेता हूँ।-
6 FEB 2019 AT 13:17
17 SEP 2020 AT 20:06
एक छोटी-सी नौकरी का तलबगार हूँ मैं
तुमसे कुछ और जो माँगूँ तो गुनहगार हूँ मैं
एक-सौ-आँठवीं अर्ज़ी मेरे अरमानों की
कर लो मंज़ूर कि बेकारी से बेज़ार हूँ मैं
मैं कलेक्टर न बनूँ और न बनूँगा अफ़सर
अपना बाबू ही बना लो मुझे बेकार हूँ मैं
मैंने कुछ घास नहीं काटी, किया BA पास
हो समझदार, समझ लो कि समझदार हूँ मैं-
5 MAR 2024 AT 10:41
नौकरी नौजवानों के जीवन का वह श्रृंगार है जिसके बिना
परिवार और समाज उन्हें सम्मान की नज़र से नहीं देखता!-
12 JUN 2018 AT 7:58
ये दूर शहर की नौकरी भी कुछ ऐसे मजबूर कर गयी
पिता को उनके पिता से और हमें उनसे दूर कर गयी।-
27 JAN 2018 AT 16:23
दूर शहर, नौकरी और उस पर ये इश्क़
सुकून की किश्तें चुका रहा हूँ धीरे धीरे।-
29 MAR 2019 AT 12:39
बड़ी मासूम सी है ये ज़िन्दगी मेरी
शहर में रहूँ और गांव भी चाहिए
बस बैठा रहूँ ऊँची इमारतों में मैं
पेड़ों को काटूं और छाँव भी चाहिए।-