सुनो अघोरी,
नहीं चढ़ाती तुझे धतूरा,
छिद्रित करता यह देह तेरी।
(रचना अनुशीर्षक में पढ़िए)-
सुनो तुम...
कैलास में है,
अघोरी की दिव्यता,
श्मशान में है,
उसकी शून्यता।
उसी प्रकृति से..
तुम्हारे प्रेम की शून्यता से
मृत्यु की दिव्यता में,
विलीन हो जाऊंगी मैं भी।-
लोग आधे में थके
बन्दे ने पूरा बोया।।
बाद में राज़ खुला,
हाय धतूरा बोया।।
😁 हड़बड़ी में गड़बड़ी 😁-
😊लघु-कथा :--
लोभी भँवरा भुन-भुन कर के भुन चुका था। खूब मंडराया मगर रस की बूंद ना तो नागफनी से मिली। ना ही धतूरे से। पसीने से लथपथ और बेहाल था भँवरा। प्रतीक्षारत कमल ने सवेरा होते ही पंखुड़ियां खोल दीं। आगे ज़िद्दी भँवरे की मर्ज़ी। डायरेक्ट शहद के चक्कर मे वही तो भागा था रूठकर।।-
बातों में रूखापन होनी भी जरूरी है जनाब..
वरना तुम तो धतूरा भी खा जाते अगर वो
"ज़हरीला" ना होता....-
किसी ने पूछा
कौन हो तुम महिमा
उत्तर
" धतूरा "
थोड़ा और explain करो न
"ब्लैकहोल"
सन्नाटा...-
वो जब आये ज़िन्दगी में
हम उनके इश्क़ में फूल के भटूरा हो गए हम।
कुछ दिनों बाद बड़ा रोये भी ज़ोरो से
जब वो किसी और को गुलाब बना बैठे
और हम उनके लिए धतूरा हो गए हम.!!-