गुरु की वंदना का अर्थ कर्मकांडों से नहीं अपितु
उनके विचारों और जीवन आदर्शों को अपनाने से है-
प्रश्न :- क्या हम पहले मिल चुके हैं?
उत्तर :- पता नहीं ...पर पहले बताओ
तुम्हारी ख़ुद से
मुलाकात हुई है या नहीं?-
"समय के साथ बच्चों को यह याद और एहसास दिलाइये
कि उनका और आपका साथ किसी धर्मशाला में ठहरे यात्रियों की तरह है जिन्हें कुछ समय के लिए कमरा साथ मिल गया है। एक दूसरे का साथ है अच्छा है पर एक समय के बाद की यात्रा एकाकी ही होनी है और इसके लिए रसद का सामान भुलाया नहीं जाना चाहिए ।"-
जिह्वा से वाणी और स्वाद हैं
आँखों से दृष्टि है
कानों से श्रवण है
नासिका से गंध है
त्वचा से संवेदनशीलता है
इनकी मितव्ययता हो , दुरुपयोग नहीं...इन महत्वपूर्ण
पाठों के लिए यदि मैकाले के स्कूलों में कोई व्यवस्था होती तो क्या मैकाले हमारे दर्शन का हिस्सा न होता ?
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स्वयं सधें उसके बाद ही संतान की इच्छा करें,
असाधित मनुष्य कोविड वायरस की तरह ही होता है,जिसका संक्रमण तो प्रकट होने में भी लंबा काल ले लेता है-
कुर्बानियों से रोशन है हमारी आज़ादी
चलो...संभालें...तिरंगे की शान बहुत है
लहू से नहाकर लहराई है ध्वजा
आओ...संभालें...तिरंगे की आन बहुत है
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" आपने यदि बच्चों को अपने चश्में से दुनिया देखना सिखा दिया उस दिन आपने उसकी software programming करके उसकी आधी ज़िंदगी बर्बाद कर दी, बाकी आधी ज़िंदगी वो यांत्रिक रोबोट बनकर ख़ुद ही बर्बाद कर लेगा "
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अपनी संतान के समक्ष जब मुझमें बुद्धिजीविता और अनुभव का अकड़ चढ़ने लगता है तो स्वयं को एक बार अवश्य कहती हूँ ," मुझमें इतना दम होता तो मेरा बच्चा अन्य महान व्यक्तित्वों के स्थान पर मुझे ही न पढ़ रहा होता ?"
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