मित्र का जन्मदिन
(गद्य साहित्य)-
Vice President :- Poetic Atma
President at Purvaiya Poetry
क्या ही सितम निकाले गए उस जहान से
हम आसमाँ के लोग थे जीते थे शान से
ऐसा नहीं है वो हमें भाता नहीं, रक़ीब
बस तंग आ गया हूँ मैं इस खींच तान से
तू चाहता है मैं तेरी जानिब को फ़िर चलूँ
मैं तीर जो निकल गया तेरी कमान से
मिन्हा ख़लकनकुम व फ़िहा नोईदकुम
मिट्टी भी ली गई मिरी हिन्दोस्तान से
क्या हो अगर ये नर्क हो कोई जहान का
क्या हो अगर न आये कोई आसमान से
कोई दोस्त ही नहीं मिरा इक तुझको छोड़ के
तू है मिरा तो लेना ही क्या दो जहान से-
हम को अभी पहचान ले ए जान वग़रना
इक़ उम्र तेरी आँख के पानी में रहेंगे-
मेरी कविताएं
मेरी कविताएं, और कुछ नहीं
बस कुछ बातें हैं
जो , मैं तुमसे करना चाहता था।-
सब चाँद निकलने की तरफ़ देख रहें हैं
हम चाँद से चेहरे की तरफ़ देख रहें हैं
तू लौट के आजाएगा उम्मीद यही है
हम बैठ के रास्ते की तरफ़ देख रहें हैं
खिड़की की तरफ वो है और उस के बगल हम
हम खिड़की के शीशे की तरफ़ देख रहें हैं
हम को न ख़बर कुछ दरों दुनिया की बला का
हम हुस्न तुम्हारे की तरफ़ देख रहें हैं
इक़ पल में भुला बैठें हैं दुनिया के मसाइल
इक़ छोटे से बच्चे की तरफ़ देख रहें हैं-
एक लड़की को देख के ऐसा लगता है
इस लड़के के पास भी है दिल जैसा कुछ-
हम ढूंढ़ लें कोई तुम जैसा
ये तो नामुमकिन है
तुम ढूंढ लो कोई हम जैसा
आसान ये भी नहीं-
बन्द कमरा ,सर पे पंखा, तीरगी है और मैं
एक लड़ाई चल रही है जिंदगी है औऱ मैं-
मैं जिनके सामने झुकता नहीं हूं
मैं उन के वास्ते अच्छा नहीं हूं
तेरे कहने पे मैं भी दुम हिलाऊं
मैं आशिक़ हुँ कोई कुत्ता नहीं हूं-