चाहे जीतनी भले ही देरी हो
इक़ दुआ है कभी तो पूरी हो
काश हम तुम से हक़ से कह पाते
जान ए जॉ तुम तो सिर्फ़ मेरी हो-
Vice President :- Poetic Atma
President at Purvaiya Poetry
देखो समझो ऐसा करना ठीक नहीं
चोरी चोरी उसको तकना ठीक नही
इश्क़ मुहब्बत प्यार वफ़ा सब जायज़ है
पर लड़की का पीछा करना ठीक नहीं
तू है मुस्लिम वो पंडित की बेटी है
तेरा उस लड़की पर मरना ठीक नहीं
जिस लड़की ने हाल हमारा पूछा है
हाल मेरा तुम उस को कहना ठीक नही
इक लड़की है तुझ पर मरती है असग़र
इतना पत्थर दिल भी होना ठीक नहीं
गली मुहल्ले के लोगों को शक होगा
चोरी चुपके छत पर मिलना ठीक नहीं
इक दूजे की चिंता फिक्र परेशानी
वो तो ठीक है बाबू शोना ठीक नहीं-
दवाई बन नहीं पाई अभी तक
पहेली है वो बीमारी अभी तक
कोई अब पूछने वाला नहीं है
ये रोटी क्यों नहीं खाई अभी तक
पिताजी कल ये कह के रो पड़े हैं
कुँवारी है बहन बड़की अभी तक
मुहब्बत कर ही लेता हूं नई मैं
यही आदत नहीं छूटी अभी तक
ख़ुदा जाने मिरी मिस्टेक क्या है
वो लड़की मुझसे है रूठी अभी तक-
एक दिन सबको जीते-जीते मर जाना है
जिस दिन सब कुछ पा लेना है घर जाना है
बस इतनी सी ख़्वाहिश लेकर जीते है हम
हमको बस उनके दिल के अंदर जाना है
मैं छोटे घर का सबसे अव्वल लड़का हुँ
सपनों का हर बोझ भि तो हम पर जाना है
हार की सारी ज़िम्मेदारी बस मेरी है
जीत का सेहरा यां पर सबके सर जाना है
वैसे तो तुमने दस दुनियाएं फ़तेह करी हैं
जब मोहतरमा तुम्हें डराए डर जाना है
शादाब-असग़र तन्हा बैठे सोच रहे हैं
पाँच बजे अर पंच लगा कर घर जाना है-
शदाब असग़र तुम्हारे बिन भी अगर जिएँगे तो क्या करंगे
एक ऐसी दुनिया जो तेरे बिन हो वो दुनिया कितनी उदास होगी-
दो मिनट की चार बातें , चार बातें प्रेम की
और कुछ इसके अलावा तुमसे मांगा तो कहो-
दिल्लगी आशिकी निभाते हुए
उम्र गुज़री फरेब खाते हुए
ज़िन्दगी अच्छे दिन दिखाते हुए
थक गई है वो आज़माते हुए
जिनकी मैं जुस्तजू लिए बैठा
साफ दिखतें है दूर जाते हुए
अपने बच्चो को मैं सिखाऊंगा
जात भी देखो दिल लगाते हुए
दस बरस लग गए मुझे असग़र
दिल की बातें जुबां पे लाते हुए
रोजी रोटी की भागा दौड़ी में
शायरी खो ही दी कमाते हुए
आप तो एक हसीन लड़कीं हैं
अच्छी लगतीं हैं मुस्कुराते हुए-
रस्ता बराए इश्क़ के आसान कर दिया
खुद अपना जान बूझ के नुकसान कर दिया
ऐसा नहीं है आपसे उल्फ़त नहीं हमें
लहज़े ने आपके हमें हैरान कर दिया
हैवानियत की दौड़ में अव्वल रहा था मैं
बस इश्क़ ने तेरे हमें इंसान कर दिया
मुश्किल बहुत जीतना अपनों को प्यार से
हमने भी सबसे जंग का एलान कर दिया
नक़्शा बदल दिया है हुक़ूमत ने मुल्क़ का
हिन्द ओ सतां को हिंदू-मुसलमान कर दिया
असग़र शदाब आप के बस की नहीं ग़ज़ल
ये कह के आप ने मेरा अपमान कर दिया-
हैवानियत की दौड़ में अव्वल रहा था मैं
बस इश्क़ ने तेरे हमें इंसान कर दिया-