दहशत
होने लगती अकल्पित, अनाँकलित सी दहशत शाम से ही
पत्नी भयाक्रांत, किसी अनिष्ट की आशंका प्रति सन्ध्या, रात्र
सहमे बच्चे सो जाते भूखे , पित्रागमन की ख़ुशी आँखों से काफ़ूर
चिंता की लकीरें, स्पष्ट उभरी कपाल, कंपित भीत कोपपात्र
मदिरा मंदिरा संग, पुलकित अंग-अंग, लोमहर्षित भर उमंग
गृहप्रवेशित हो आवेशित, कर परिजनों का रंग-भंग
मद्यप-वनिता, मद्यप-तनुजा हेतु कदापि न प्राप्त मनोशान्ति
तन-मन सदैव क्षत-विक्षत, आच्छादित करे मानसिक क्लांति
बनी बनाई सामाजिक प्रतिष्ठा पल भर में लग जाती दाँव
सवारी अश्व उपरांत गर्दभ की ज्यों उपहासे सारा गाँव
समक्ष पड़ी सम्पूर्ण जवानी, क्यों चाहे होना कोई कहानी
दुनिया के सर्वसुखों के आगे क्यों भाए है तुझको मनमानी
जब तड़पोगे दर्द से आएँगी याद सब दादी - नानी
क्या कोई टीका बन नहीं सकता चिकित्सा हेतु इस दुर्व्यसनी???-
6 JUN 2021 AT 22:32
26 NOV 2020 AT 16:36
# 28-11-2020 # काव्य कुसुम # दुर्व्यसन #
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आज फैशन-व्यसन मानव का सुख-चैन नष्ट कर रहे हैं ।
वेश-भूषा, साज़-सज्जा मध्यम वर्ग को भ्रष्ट कर रहे हैं ।
सच्चे सुख के लिए आत्ममुग्ध होकर दुर्व्यसन त्यागो -
सुरा-सुंदरी पर अपव्यय धनिक वर्ग को त्रस्त कर रहे हैं ।-
29 MAY 2020 AT 17:24
दुर्व्यसनों की धूल पड़ी है जिन आँखों में,
तुम उनके किसी बहकावे में न आ जाना-