तासीर इश्क़ की अब तलक ना समझ आई
कभी एहसास-ए-सुकून कभी स्याही-सी तन्हाई-
उम्मीद की रोशनी में लिखे फ़साने भी,छलक कर बोल पड़े,
हक़ीकत की तासीर कुछ और होती , गर हम रूबरू होते।-
काश तासीर-ए-ज़हर होता नज़र में
इश्क़ अपना कौन फिर बोता नज़र में
लोग तासीर-ए-दुआ ही चाहते फिर
उस ख़ुदा की कोई कब रोता नज़र में
राज़-ए-मोहब्बत पास रखते सब छुपाकर
इश्क़ किसका कौन तब ढोता नज़र में
ख़्वाब में भी राज़-ए-दिल ही पास रखते
ख़्वाब किसका रोज़ तब सोता नज़र में
नरगिस-ए-साहिर लोग होते काश 'आरिफ़'
इश्क़ तब क्यों रोज़ फिर खोता नज़र में-
तासीर पुराने यारों की रूह को सुकून दे जाती है
जिंदगी के चेहरे पे राहत की मुस्कान दे जाती है-
खिला था एक गुलाब ख़्वाब में मेरे
बाकि है ख़ुश्बू उसके मुरझाने के बाद-
यादों की ये जागीर अब संभलती नहीं मुझसे
तू नहीं है मगर तासीर तेरी मिटती नहीं मुझसे
!!!-
तेरी मंज़िल का अब, हूँ राहगीर ही नही
रास्ता खरीद लूँ, इतना अमीर ही नही
जज़्बातों के दाँव से ही मिली है शिकस्त
रक़ीबों के पास कोई तदबीर ही नही
मुझसे वाबस्ता ख़्वाब तुम देखा न करो
मेरे हाथों में तुम्हारी लकीर ही नही
हसरतों के वास्ते क्यों हो जाएं नीलाम
अख़लाक़ रहे, हो जाएं फ़कीर ही सही
गुरबत में बदला है अंदाज़ रहबर ने भी
रहनुमाई में उसकी, अब तासीर ही नही
रूह को बेचकर ही जिस्म वो था हासिल
कर गए वो सौदा, जिनका ज़मीर ही नही
खुदी को बेचकर हो गए रईस वो,'राज',
रंग लाती है यहाँ फक़त तक़दीर ही नही-
काश कोई हमें भी बता पाता की
कौन है हम ..
क्या तासीर है हमारी...
बस इतना है याद ..
बादलों के उस पार एक तस्वीर है हमारी .. .-
तस्वीर उनकी कुछ दिलबर जैसी है
डरता हूँ उनसे कहीं स्नेह मुझे न हो जाये-
तू क्या जाने क्या हाल है मेरा
कैद हो गया हूँ आज़ाद करते करते-