तू चल, तिरी रहगुज़र में दिखेंगे कहीं
उसने मौका दिया, फ़िर मिलेंगे कहीं
तिरे इश़्क से हौसला तो मिल गया मुझे
मिरे संग चल, हमसफ़र भी बनेंगे कहीं
मंज़िलों की चाह में हाथ जो छोड़ा मिरा
गिर गये, बिन तिरे अब कैसे चलेंगे कहीं
ख़्वाब जो देखते हैं हम ज़िन्दगी के लिए
गर गिरेंगे कहीं, तभी तो हम उठेंगे कहीं
तू जा, जाने वाले को कौन रोक सकता है
आज चलेंगे, तभी तो हम मिल सकेंगे कहीं
फूल गर "कोरे काग़ज़" के हैं तो क्या हुआ
आज कली हैं, तो फूल भी अब खिलेंगे कहीं-
Mr. Mr.ही रहे, मे Miss Mrs. हो गईं ,
वो शेखावत थे तो मै भी सिकरवार से शिफ्ट हो गईं।
माँ बाप का घर छोड़,आज भी मुझे ही जाना है,
जाने क्यूँ लोग कहते है अब बराबरी का जमाना है।
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अलविदा 2020 अब याद ना आना तू,
न जाने भारी रहा किस-किस पर तू।
कैदी बन घर पर रहे कहर-ए-कोरोना जब छाया,
अनेकों घर के दीपक बुझे उठा कितनों के सर से मां-बाप का साया।
2020 जीवन में ऐसा आया ,
जिसमें किसी ने कुछ न पाया ।
मृत्यु हुई मेरे प्यारे मामा की ,
न जाने कितने मां के दुलारो की ।
2020 का इतिहास बड़ा खराब रहा यह साल,
अर्थव्यवस्था ठप रही पलायन कर मजदूरों का हुआ बुरा हाल ।
पैदल चल मजदूर अपने घर तक पहुंचे कुछ हादसे का शिकार हुए,
भारत-चीन झड़प में वीर-पराक्रम दिखा गलवान में कई जवान शहीद हुए ।
लॉकडाउन जब हुआ गरीबों के पेट पर चल गया आरा,
खेती छोड़ कड़ाके की ठंड में धरने पर बैठ गया किसान सारा ।
कितने ही परिवार उजड़े साथ छूटा अपनों का,
कौन इसका हिसाब देगा 2020 में लगे जख्मों का ।
हे सृष्टि के पालनहार !आप ही हरोगे हर पीड़ा सभी के जीवन से ,
नए साल पर हो खुशियों का आगाज़ प्रार्थना करो सभी उस ईश्वर से।।-
आधी उम्र जिसे खत भेजता रहा हूँ
वो क्या जाने बिना तनख्वाह का डाकिया रहा हूँ-
ना देख इस कदर
की हौले से मुस्कराऊ
और होठों पर तिरा ही नाम आएं....
चल ना आज करते ऐसी गुफ्तगू
जवाब सूझे नहीं
तेरे सवालात कभी खत्म ना हो.....— % &-
Writer mr Vivek Kumar pandey
"जाने कब मेरी जिन्दगी तबाह होगी
दिल की बात फिर से सुनवाह होगी
कब तक चलेगा ये अभियान फिर से
मेरी रोशनी रोसान होगी".।-
जाने कब मैं शायर बन गया ,
शायरी का सप्लायर बन गया ,
आशिकों का अफेयर बन गया ,
टूटे दिलों का केयर बन गया ,
जाने कब उनकी जिंदगी चलाने वाला टायर बन गया ,
आउट हुए प्लेयरों का एम्पायर बन गया ,
बेरोजगारों का कैरियर बन गया ,
उनकी जिंदगी और मौत के बीच का बैरियर बन गया ,
जाने कब उनकी आशाओं का ग्लेशियर बन गया ,
उनके आशुओं के बांधों का इंजिनियर बन गया ,
आत्मा को आत्मा से जोड़ने वाली वायर बन गया ,
बदले की भावना को जलाने वाली फायर बन गया ,
जाने कब गम भुलाने वाली बीयर बन गया ,
उनकी गाड़ी को न रुकने दे वो गियर बन गया ,
और
जाने कब मैं अपनी कलम का डियर बन गया ।
जाने कब मैं शायर बन गया...... ।।
ऋतेष शर्मा
(एक गुमनाम शायर)
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तेरे जाने के बाद फैसले बहुत किए मैने,
तेरे जाने के बाद खुद के साथ रहना छोड दिया मैने,
तेरे जाने के बाद कौन रोकता कौन टोकता मुझे,
जी भरके खुद को बरबाद किया है मैने,
तेरे जाने के बाद नजर ही नहीं आती अब कोई मंजिल मुझे,
किसी और का हो जाना अब मेरे बस में नहीं,
ये तेरे जाने के बाद का ही सन्नाटा है,
जो अब तक कान में चूभ रहा है !!!-