कभी कभी हम लोग क्या अजीब सा इत्तेफ़ाक बना लेते हैं
इतना गहरा होता नही ज़ख्म जितना कुरेदकर बना लेते हैं
जहाँ होनी चाहिए आवाज़ बुलंद हमारी वहाँ होती नहीं है
बाद में पीठ पीछे से अपने आप को सिकंदर बना लेते हैं
क्या मिलता है लोगो को दूसरों की जिंदगी में दख़ल दे कर
उनके बीच अविश्वास पैदा कर दीवार भेदकर बना लेते हैं
और मैने देखा है अक्सर जमाने की फितरत को गौर से
जिसको ज़रूरत नहीं है उसको भी जरूरतमंद बना लेते है
वक़्त की जरूरत कुछ ऐसी होती है जो नहीं चाहते करना
अपना मन मार कर नापसंद को अपनी पसंद बना लेते हैं
इस ज़र्ज़र पड़े अपने शरीर को कुछ अच्छे काम में लगाओ
क्या हम बेहुदा से शौक़ औरआलस को आनंद बना लेते हैं
हर इश्क़ के मुसाफ़िर का अपना अलग दर्द होता है 'रूचि'
बेवफाई झेलकर अपने दिल में दर्द की सुरंग बना लेते है
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