"घड़ी चढ़े, घड़ी उतरे, वह तो प्रेम न होय,
अघट प्रेम ही ह्रदय बसे, प्रेम कहिए सोय।"-
20 MAY 2020 AT 7:51
16 AUG 2021 AT 21:05
हर रोज़ थोड़ा और मरते ही जा रहे हैं उसके ही अक्स पर,
सारी कायनात आकर रुक गई हो जैसे उस एक शख्स पर।
डॉ सपना पांडेय मिश्रा
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4 DEC 2023 AT 23:25
बहुत जरूरी है
सही समय और दिशा का ज्ञान होना।
वर्ना चढ़ता हुआ सूरज भी
डूबता हुआ दिखाई देता है।-