धीरे धीरे उसका हाथ मेरे हाथों से छूटते हुए देखा हैं,
मैने तिनका तिनका खुद को टूटते हुए देखा हैं।
मय्यते तो कई देखी होगी सबने , मैंने खुद को खुदकी मौत पर रोते हुए देखा हैं।
डॉ. सपना पाण्डेय मिश्रा-
कुछ तो गुनाह होंगे मेरे भी हिस्से में , जो तू गुजरा तो हैं राहों से मेरी पर मेरा होकर भी न हुआ।
Dr Sapna Pandey Mishra-
उस मिल्कियत की तरह हैं तू मेरी ,जिसके भरोसे एक शख़्स अपना सब कुछ दांव पर लगा सकता हैं।
Dr Sapna Pandey Mishra-
ज़मीन पर गिरे हुए कचरे को फेकने के लिए बड़े से बड़े इंसान को झुकना ही पड़ता हैं। कचरे जैसी मानसिकता वाले लोग जब सहन न हो सके तो थोड़ा झुक जाएं, उनकी नहीं अपनी मानसिक सफाई और शांति के लिए।
Dr Sapna Pandey Mishra-
वो जिसका रंग चढ़ा मुझ पर वो कोसो मिलो दूर हैं, हैं दर्द भी ग़म भी रुसवाई भी फिर भी ईश्क़ उससे मंजूर हैं।
डॉ सपना पाण्डेय मिश्रा-
और फिर एक दिन हमारी मोहब्बत पर दुनिया के पहरे हो गए, फासले जो ज़ख्म थे वो और गहरे हो गए, अरमानों से सीचा है ईश्क़ के फूल जरूर खिलेंगे, तुम यकीं रखना हम फिर से जरूर मिलेंगे। डॉ सपना पाण्डेय मिश्रा
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जिंदगी के एक हिस्से में जहाँ तेरे होने से सुकून था , वहाँ अब गहरा घाव हैं,
यूं तो कहने को सब कुछ हैं माँ पर लगता हैं कुछ भी नहीं है न तू है और न तेरे आंचल की छाँव हैं।
Dr Sapna Pandey Mishra-
I am confused whether I should regret being surrounded by traitors who keep talking ill at my back or grateful for having hidden admirers who keep warning me about such things.
Dr Sapna Pandey Mishra-
She found him as the main character of her story and regretted investing herself too much on side characters.
Dr. Sapna Pandey Mishra-
रविवार का दिन है, माँ के घर वाली गली हैं, अनगिनत अहसास और मैं आज फिर उसी चौराहे पर हु।
मुड़ जाऊ उस गली में ,माँ को बिन माँ के महसूस कर आऊ या दूर से आंसू बहाऊ , मैं फिर से दोराहे पर हु।
Dr Sapna Pandey Mishra-