दोस्तों को दोस्तों से
मिलने की फुर्सत कहाँ!
ग़र मिल भी जाएं तो
अपनी अपनी दुनिया
अपने अपने मोबाइल!!-
नाज़ुक फूलों सी लगती हैं।
क्योंकि,
जीवन की कठिन पगडंडियों में
तुम मेरे साथ हो।-
तेरी जुस्तजू ही मेरी बंदगी है।
सजना-संवरना तो एक बहाना है
तेरा दीदार ही मेरी तश्नगी है।-
बेशक!
मैं बूढ़ा हो गया हूँ।
पहले सी हरे पत्तों वाली छांव
भी मेरे पास नहीं है।
मगर कुछ परिंदों की आरामगाह
आज भी हूँ मैं।-
पूनम के चाँद की ठंडक ही सबको भाती है
अमावस के चाँद से तो चाँदनी भी ख़ौफ खाती है।-
अरे ! किसान,
तुम खेतों में अन्न उगायो |
भरो पेट हमारा,
भले खुद भूखे सो जाओ |
मेरे बच्चों को,
शहरों में पड़ने दो |
अपने बच्चों को खेतों में,
पसीने से लड़ने दो |
अरे ! ‘जय जवान, जय किसान’,
का नारा पहले दिया |
अब कह दिया तुम्हे,
अन्नदाता-भाग्य-विधाता |
कमाल है,
हम शब्दों के खिलाड़ी है |
और एक तुम हो,
तुम्हे कोई शब्द ही नहीं भाता |
-
एक बार तुम आओ तो सही।
फिर ख्वाहिश न रहेगी जन्नत की
हाल-ए-दिल सुनाओ तो सही।-