उसे जल-बुझ होती चिमनी में बाहर आँगन में सोना पसंद है,
के उस गरीब को शहरो में जलती रौशनियों से निंद नही आती।।-
जल बुझ होती चिमनी कितना रोशन करती है गाँव।
शहर की चकाचौंध में भी कितना अंधेरा सा होता है।।-
वो चिमनी बुझाने लगे,
अँधेरा करने के लिए,
और मैंने अपनी आँखे बंद कर ली,
अँधेरा देखने के लिए।-
चिमनी से निकला धुंआ और कलम से निकले शब्दों को फैलने में देर नहीं लगती है...
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(ए सर्दी का मौसम)
ए ठंडी ठंडी "हवा" और ए "चिमनी,"
तुम्हारे साथ गुजारे हुए हर एक सर्दी के मौसम कि याद दिलाती है।-
चिमनी
काँच की एक पुरानी-सी शीशी,
ढक्कन के छेद से निकलती
कपड़े की बाती,
गले तक भरा हुआ मिट्टी का तेल,
धधकती हुई आग की ज्योत,
और निकलता हुआ काला धुँआ।
शीशी धूमिल ही सही रोशनी अनमोल तो थी,
चेहरे धुंधले ही सही जज़्बात साफ़ तोे थे,
रात काली होती थी, रोशनी के मायने भी थे,
बत्ती घेर सुनते, झपकते थे बच्चे,
कहानियाँ लंबी तो थी।
तब हवा का रुख एक-सा हुआ करता था,
तब मिट्टी का तेल सस्ता हुआ करता था।
...-
#छोटीसी प्रेम कहाणी..❤️
कैसे बया करे की मोहब्बत है तुमसे
डर लगता है कि आप रुठ ना जावों हमसे..
आप हमसे रूठे ये हमें पसंद नही
आपसे मोह्हबत है ये हम कहेंगे ही नही..🙄-
पता है जब "भोर" में
चिमनी बुझती है तो
उसकी नज़ाकत
दिखयी नहीं...देती
क्योंकि उसकी
रात्रि के सफर में
तुम नहीं थे बस
तनहाइयाँ थी..
वो तो बस सिमटती
हुई ... ओस से होकर
ओजस्वी हो गयी।-