तेरे गालों से गीली मिट्टी की खुश्बू आती है
लगता है कल रात फिर बरसी थी तेरी आँखे-
शोर धड़कनों का अब भी कहीं बाकी है,
रंग बाकी है अभी गाल पर तेरे मलना !-
एक फीकापन सा रहता है, फाल्गुन-होली में आजकल
सुनो! तुम मेरे गालों की 'लाली' बनकर, आ जाओ ना
- साकेत गर्ग 'सागा'-
जो आज हमारे 'लब', उनके गालों तक पहुँच गये
हम थे तो यहीं ज़मीन पर, पर जन्नत में पहुँच गये
- साकेत गर्ग 'सागा'-
उड़ने लगती है पतंग मेरे दिल की
जब बात हो तेरे होंठो के गुड़ और गालों के तिल की-
लगता है अश्कों को इश्क़ है मुझसे
चूम लेते हैं गालों को तनहाई में-
चाहता तो हूँ कि अब चूम लूँ तुम्हारे इन गालों को मैं
पर अपने ही लबों से ख़ुद जल भी तो मैं ही जाता हूँ
- साकेत गर्ग 'सागा'-
उनसे होने लगा है इश्क़, क्या किया जाये
रोक लें ख़ुद को या अब होने दिया जाये
गालों की लाली है उनकी सुर्ख़ गुलाब सी
काँटो से डरें या ये ग़ुलाब चूम लिया जाये
नज़रें हैं चाँदनी में नहाई हुई झील उनकी
सूखे रहें या अब झील में नहा लिया जाये
दिखती हैं किसी हूर-ए-अदन सी हसीं वो
देखते रहें या उनको गले लगा लिया जाये
टपकती है मोहब्बत बातों से उनकी भी
टपकने दें या अब सीधा पूछ लिया जाये
सुना है इज़हार-ए-इश्क़ होता है अदब से
अदब में रहें या अब बेशर्म हो लिया जाये
- साकेत गर्ग 'सागा'-
अब और किस हद तक इश्क करू "सत्येंद्र" उससे।
उससे दिए जख्मों को उसके गाल समझकर चूम लेता हूं।।-