एक उदास सा शख्श है,
तन्हा दीवारें हैं...!
खिड़कियां भी ख़ामोश हैं,
इंतज़ार अब भी ज़िंदा है!-
वो मेरा शहर छोड़ गयी महबूब
मुझे खिड़किया भी खोले एक जमाना हो गया-
हम भी तो तेरे इश्क़ की कहानी हो गए
तेरे इश्क़ में बहती दरिया का पानी हो गए
खिड़कियां बंद रहने लगी क्यूंकि दरवाजे
से तू आने लगा धीरे धीरे दिल में समाने लगा-
आंसू बहाते बहाते ,आंखें कंगाल हों गयीं "तृषित",
उधर शान से पर्दा लहराता रहा, खिड़कियां हंसतीं गयीं.-
खुली खिड़कियां ,बूंदों की टपक टपक।
बोछारों का छूना, जैसे इश्क़ हो कोई ❣️-
मोहब्बत में हम रुसवा सरे बाज़ार हुए
वो चुपचाप बैठे रहे हम तार तार हुए
आखिरी तिनके तक बिखर गए थे हम
फिर वो उठे और जाने को तैयार हुए
न पूछा की हम पर क्या गुजरी है
न जानना चाहा कि ये सांस क्यों बाकी है-
जिसने मुझे दीवाना बनाया,वही आज पागल कहती है
जो खिड़कियां बात करती थीं कभी,आज बंद रहतीं हैं-
कब तेरे पास आया, जान नहीं पाया. कब दिल में समाया, समझ नहीं पाया. सांसों के खुशबुओं में खोया रहा यूँ,
कब मुर्गे ने बांग दी , सुन नहीं पाया.-
इस अंधेरे को भी उजाला बना देंगे।
बोल कर नहीं कर के दिखाएंगे।।
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