खुदाया तेरे दर को, हातिम न मिलेंगे ठुकराया जो दुनियां को, खादिम न मिलेंगे पहले जो आसी है वही इंसान हुआ है हवाओं की रक्सां से ना राज़ी हो, मौसम न मिलेंगे
खादिम मालिक बन बैठा है जाने क्या क्या अरमान सजा बैठा है रंज ओ गम पाले बैठा है जाने कैसे कैसे मुगालते लिए बैठा है खार ए फाकापरस्ती जानिब दिल में आग लिए बैठा है जलाना चाहता है आलम ए रंग ओ बू मेरे हौसलों को तोड़ने की रार ठाने बैठा है हुकूमत क्या करेगा वो हुकूक की खिलाफत का जो पारदार बने बैठा है नासाफ़ इरादे लिए, मसीही बन नासूत का मेहरबान बने बैठा रंज ना कर गम ए दौर का ऐ मीत मसीही का ओढ़े ले भले ही कोई चेहरा हिसाब करने को सबका निगेहबान ऊपर बैठा है
सल्तनत में सुल्ताना न हो... खादिम तन्हा सा रेह जाता है.... आइना भी अक्स में सिर्फ़ तेरा चेहरा दिख लाता है.... आ जाओ जल्द ही वापस सर-ज़मीन-ए-मोहब्बत पर.... अब तो तुम्हारे बिना... मौसम भी बिगड़ जाता है....
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