ये आँखें बुनती हैं कुछ ख्वाब
उलझ जाती है जिन्दगी उस बुनाई में
मगर उन अनसुलझे धागों में
बँधे रहना चाहता है दिल खुद ही
उस कैद में परेशानी भी है और सुकून भी...-
ये शक ओ शुबह
ये रोना, रुठना
ये सूनापन,
ये खालीपन
फैला हुआ वीरानापन
अजब गज़ब के अहसास
प्यार है या दीवानापन....-
जिन्दगी मेरे पास आ
तुम्हें गले लगाना है
दे सकती है कितने गम
तुम्हें भी आजमाना है
समन्दर है पास नहीं है फिर भी आस
तेरे खारेपन में है मिठास की तलाश
ज़िद है उसी से प्यास बुझाना है
जिन्दगी मेरे पास आ
तुझ में डूबकर, तुझमें घुलकर
तेरे रंग में रंगकर जीना है....-
शाम होते ही
पसर जाती है एक खामोशी
रगों में दौड़ता है कुछ बर्फ सा
चुभता है सन्नाटा
खलीश सी होती है जिगर में
शाम होते ही सामने आता है सच..
मेरे बेहद तन्हा होने का.....
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कहाँ है वो धरती जिस पर बोऊंँ
सम्बंधों के वो बीज
जिसपर निष्ठा के बृक्ष उगे
बंजर पड़ी है धरा...
अपनत्व के बोध से...-
दिल हर बार टूटता है
दिल हर बार उम्मीद से जीता है
प्यासे को क्या पता, किस घड़े में पानी है
कौन सा घड़ा रीता है...-
पलकों पर है नींद का बोझ
दिल को है दीदार की हसरत...
चाँद भी आज छुपा बैठा है
किसके हाथों भेजूं खत....
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