QUOTES ON #काव्यस्यात्मा

#काव्यस्यात्मा quotes

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20 OCT 2020 AT 9:59

《इक शहर》
इक शहर भीतर बसा रखा है,
एहसाँ है ख़ुदा का इक दर्द छुपा रखा है।
इस शहर में दुख का दरिया सैलाब पर है,
इस शहर का हर शख़्स इक अज़ाब पर है।
शहर-दर-शहर हारने को दौड़ते हैं,
पर ज़िंदगी के पांव कभी न देखते हैं।
दर्द छोटा हो, चाहे बड़ा हो
शहर के आग़ोश में सब तन्हा सिसकते हैं।

ख़फ़ा हो कोई ज़िक्र भी न होगा,
ज़िंदगी मात खाए तो खाए
लज़्ज़त-ए-दर्द-ए-शहर बसा है,
बसा ही रहेगा।
शहर की सांस कभी थमेगी नहीं !!
ज़िंदगी कभी रुकेगी नहीं !!
-काव्यस्यात्मा

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29 AUG 2020 AT 11:59

तेरा इश्क मेरी चाहत है।

तुझे खुश देख आज मेरे दिल को राहत है।।

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18 OCT 2020 AT 20:15

डिजिटल दुनिया में कैद है, अब हमारी जिंदगी,
ऑनलाइन ही करते हैं, अब रब की भी बंदगी।

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7 JAN 2021 AT 21:37

ख्यालात का खौफ ठीक से जीने नहीं देता,
और जज्बात का जुनून मरने नहीं देता।

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28 JUN 2020 AT 14:27

भींगते रहे हम
-(शायरी-कामिनी मोहन)
जो वादा आपने किया, वो कर के दिखाया
हमने भी अंधेरे को, रोश़न कर के दिखाया।1।
हाथ उठते है, आपके दुआओं वाले
पेश़ानी पर लिखे को बदलने वाले ।2।
जुब़ा जो भी कह दे वो प्यार होता है
लर्ज़िश है लब़ो की वह तलब़ग़ार होता है ।3।
सच की गरमी से पिघल जाते है, पत्थर भी
आईना पास हो तो नहीं रहता, बदलने का चलन भी ।4।
स्वर्ग यहां, जन्नत यहां, सुर-साज़ का बहता सागर
आपकी शान में जो सजे, नहीं मिलता दरिया कोई ।5।
बेख़ुदी में खु़दा से भी, हम नहीं रहते दूर
कद़मों में जब भी हम आए, जी लिए भरपूर ।6।
सुरों की साधना का, नहीं होता मोल कोई
साधना की शान में, नहीं मिलता बोल कोई ।7।
सुरों ने हम पर ग़ज़ब ढाया, असर ऐसा हो गया
इंसान ज़िंदा हो गया, शैतान मर गया ।8।
सब कुछ तो कह दिया हैं आपने, अब हम क्या कहे।
छाया मिले जो आपकी, तो सुरों में भींगते रहे हम ।9।
-काव्यस्यात्मा

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13 MAY 2021 AT 10:52

कहाँ से सूरज लाली लाएँ,
आकर मुझको कोई बताए।


गमों के साए में मुस्कान लाएँ,
अपनों के लिए किरणें बिखराए।


समझदारी छोड़ नादान बन जाएँ,
फिर से गुड्डे गुड़िया का ब्याह रचाए।


चलो आज सभी अपनी उम्र भुलाकर,
एक बार फिर बचपन के पुराने दिन लाएं।

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24 FEB 2021 AT 13:47

गूँजता है नभ मंडल चेतना के अक्षर से,
झाँकते हैं आत्मबल ज़िंदगी के अमृताक्षर से।
गूँज उठती जब संशय हर दिशा से
अव्यक्त भाव विरत रहते देह के परमाक्षर से।

क्या इंद्रधनुष से परे अंधेरे ही गूँजते हैं?
जागती आँखों के स्वप्न निद्रा में भी चलते हैं।
है कैसा चेतना का आत्मिक रूप देख लो !
इंद्रियों में घूमते शब्द हृदय में उपजते हैं।

ज़िंदगी जिनसे है बनती कब समझ पाते हैं,
एक चक्र घूम धरती पर फिर वहीं पहुँच जाते हैं।
घूमते हैं अक्षर जिनसे आत्मबल है बनते
तिमिर देख देह मृत्यु से हार जाते हैं।

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29 MAR 2021 AT 14:20

देखो, जब पहली बार जुगनूओं के पीछे
तुम्‍हारे उत्‍तेजित क़दम चले थे अनायास।
तब मैंने निगल डाला सूर्यास्त की सिंदूरी रोशनी,
और जीवन हो गया जैसे जलता-बूझता प्रयास।
तब से आज तक क़ैद किए बैठी हो,
लोहे की सलाखों में हृदय के जुगनू को।
संभव है एक दिन फेंक दोगी,
अपने भीतर के जलते दिए को।
मैं भी तुम्हारे जुगनू की तरह दिशाहीन
आज़ाद कर, भर दूँगा सब सूराख़े।
धुआँ कमरे में देर तक भरा रहेगा,
रोक नहीं पाएगी आतिशीं सलाख़े।
छोड़कर सूर्यास्त रातभर जुगनू की तलाश में,
यहाँ-वहाँ भटकता फिरूंगा मैं।
जलत-बुझता, ढूँढ़ता रहूँगा तुमको
चुरा लूँगा चमक, जुगनू बनूँगा मैं।
जरूरी है हर रात चमकना,
तुम्‍हारे प्रेम के लिए।
जरूरी है जुगनू का दमकना,
तुम्हारे बढ़ते क़दम के लिए।
प्राप्‍त कर यौवन!
जुगनू के टिमटिमाते रहने का देख लो अर्थ,
उत्‍सव में ढँकते नहीं ख़ुशियों को
चमकते नहीं है यूँ ही व्यर्थ।

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22 DEC 2020 AT 19:26

जो प्यारी चीज खो दी,वापस तो ना मिलेगी,
क्यों न बच्चों संग बच्चा बन, बचपन लाया जाए।

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27 JUL 2020 AT 7:14

'अंदाज़-ए-तकल्लुम है अलग-अलग यारों,
वरना बाते भी वही सुनने वाले भी वही।'
-काव्यस्यात्मा

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