दो नयन तुम्हारे सूरज और चाँद कहलाते है
आँखो का काजल देख कर मेघ भी लजाते है
कंठ मे वैजन्ती माला, शिख पर मोर मुकुट सजाते है
कानो में कुंडल और ललाट पर कस्तूरी तिलक लगाते है
घुंघराली अल्कावली को देख कर सर्प लहराना भूल जाते है
सुनकर मुरली की तान तीनों लोक हर्षित हो जाते है
नूर देख चेहरे का बिजलियाँ भी चमकना भूल जाती है
श्री राधा तुम्हारा हृदय है गोपियाँ रोम रोम बसी रह जाती है
तुम्हारी तारीफ शिख से नख तक तुम अलोकिक अहसास हो
तुम प्रेम की प्रतिमूर्ति तुम भक्तों की अद्भुत अनुभूति के आभास हो-
फूलों की कोमलता तुमसे माँगे कोमलपन
फलों का रस भी तुम्हारे आगे नीरस हो आए
हो इत्र की खुशबू भी क्या जो तेरी शोखियों में हो
नदियों की लहरें भी तुम्हारी अदाओं से इतरा जाएं
सूर्य का तेज भी तुम्हारे आगे लगे फीका
चाँद भी अपना मुंह छिपाता नज़र आए
एक झलक जो देखे कोई भी तुम्हें
क़यामत से पहले क़यामत आ जाएं
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रूप दर्शन की माधुरी और अधरन की मुस्कान
देखत ही मैं भयो बावरा सुध बुध दीयो बिसार-
कोई गुनाह नहीं है इश्क़
जो हम छुपायेंगे..
हमने चाहा है तुमको
है gopluzz...
हम तो सबको बतायेंगे....-
वो जो लटें है ना श्याम सुंदर की
उनको अल्कें बोला जाता है
जिस पर मयूर पिच्छ हरदम शोभित रहता है
वो जो नयन है ना राधारमण के
उनको तलवार की धार सा बोला जाता है
जो कटीले कटार सा घाव दे जाता है
वो जो बाँकी अदा है ना बाँके बिहारी की
उसे त्रिभंगी मुद्रा कहा जाता है
जिसको देख कर हर कोई मंत्र मुग्ध हो जाता है
वो जो श्रंगार होता है ना राधावल्ल्भ का
उसमें कभी राधा रानी तो कभी श्याम प्यारे का दीदार होता है
श्रीधाम वृंदावन श्री बाँके बिहारी जी, श्री राधारमण जी,
श्री राधावल्लभ लाल जी बिना बिल्कुल सूना होता है-
बादलों के पीछे छिप जाएं सूरज चमक तुम्हारे चेहरे की देखने के बाद
चाँद भी लजा जाए शीतलता ख़ुद से ज्यादा तुम में देखने के बाद
पवन भी पोंछे पसीना पुरवाई की तरह लहलहाता तुम्हें देखने के बाद
आकाश की गहराईयाँ भी कम पड़ जाएं गर आई तुम्हें मापने की बात
धरा भी हो जाए दंग तुम्हारी अदा ना नाप पाने की रह जाए आस
अग्नि भी हो पानी पानी देखे जो दहक तुम्हारी आँखो के मायाजाल
जल में भी हो हलचल तुम्हारी भृकुटी के एक इशारे से आए पानी में ज्वार
सितारें भी आ जाते है तेरी माँग सजाने को लगा लेते कतार
कोयल भी कूं कूं करती है तुझे रिझाने को सँग बजाती स्वर सितार
मोरों में भी उमंग जगे तेरे सँग नाच नाचने को हरबार
तू कौन है, है कहाँ तू, तेरे वजूद की तलाश में बेकरार
हूँ परेशान मैं भी तेरे अस्तित्व को पहचानने का कर रहा इंतजार-
कोई उस जैसा हसीन कहाँ होगा
सूरज भी तो उसे देख कर यूँ ही जलता होगा
चाँद भी उसका रूप सलोना देख रश्क करता होगा
सितारें भी गुण उसके गाते होंगे जब रात्रि में वो निकलता होगा
उसके शहर में तो क्या सारे जगत को उसका इंतजार रहता होगा
दिलकश अंदाज कान्हा के जो भी देखता सुनता होगा
वो शक्स ख़ुद भी उसके लिऐ मारा मारा फिरता होगा
कान्हा आकर फिर उस शक्स से फिर जरूर मिलता होगा-
आएँ ना तेरा आज भी मुझे संदेश कान्हा...कर दिया मैंने अपना सावन अब तेरे नाम कान्हा...
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तुम वो झुमका हो कान्हा
जो मैंने कभी पहना नहीं,
इस डर से कि फिर कभी
इतना सुंदर कोई और आभूषण ना लगे!
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