काली घनी रातों में याद तो तेरी अब भी मुझे आती है चाहे भरी महफिल हो तब भी ये अकेला मुझे कर जाती हैं...सपने में जिस दिन तुझे ना देखुं हंसता हुआ जब मैं अपना रब ना देखुं तबीयत खराब सी तब मेरी रहती है बिन पानी के तड़पे जैसे मछली ऐसे बिन तेरे दीदार के अब मैं रहती हूँ खुदा तेरे सब दुःख देदे मुझे बस अब यहीं अरदास करती रहती हूँ....
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