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होंगी किसी के लिए कविताएं,
वाह वाही लूटने का जरिया।
मेरे लिए तो मेरी कविताएं ,
मेरी रूह का सुकून है।-
🥀श्याम वर्ण आलिंगन भर
होती श्यामल मैं कंचना
अरूणाभा भाल ठहरती
श्यामल श्यामल संध्या
ओ प्रियतम!बंसीधुन से
कण कण प्रेमालाप में
मंद - मंद बहती पवन
डूबते नयन अनुराग में
तारक बिखरे मुक्ता सम
श्वेत सोम सुमधुर गंध
बिखेरती रश्मि संध्या
बहे विभावरी अंचल मंद
श्यामल मन श्यामल काया
दिखे कृष्ण हर लोक में
रमीं राधिके कृष्णप्रेम में
कृष्णा कृष्ण आलोक में|🥀-
विभावरी व्योम में
डूबती सोम में
बुहारती मेघ बूँद
झरते शीत धुंध
कुमुदिनी खिल रही
ओस पान कर रही
मंद - मंद गंध में
लोक स्नान कर रही
दामिनी यामिनी में
गामिनी हो घुल रही
चाँदनी यामिनी में
सृष्टि सारी धुल रही
घन घटाएं सनसनाएं
बरखा फुहार लाए
बूँद - बूँद फूट कर
तन भीगे मन भीगाए
पवन की वेग से
खोती मैं सुधबुध
हे नाथ! हृदय रखो
मुझको समेट तुम|🥀-
इन दिनों कविताएंँ नहीं लिख रही हूंँ
इन दिनों ख़ुद को लिख रही हूंँ..
इन दिनों ज़िंदगी को लिख रही हूंँ..-
चंद्रप्रभा आकंठ प्रेम में
तारिकायें अंबर सज़ा रहीं
श्याम रूप की रूपकता से
श्यामल होती विभावरी
कण-कण हो रहा मधुबन
ब्रजरानी ब्रजवल्लभ संग
प्रेम माधुरी कल कल बहती
पवन बिखेरते अजब तरंग
कहें राधिके माधवमोहन से
कृष्ण अंग आलिंगन कर
श्याम रूप आकृति उभरती
देखो मोहन, तुम भी चंद
कहें श्याम, वह है श्यामा
नभ से यूँ मुस्कातेे मंद
फैली चंद्रप्रभा उसी से
अर्ध निशा के पूर्ण चंद|🥀-
" बुद्ध "
त्यागकर संसार भार
बढ़े तुम निर्वाण पथ
चले मोक्षप्राप्ति ओर
आत्मदीप प्रकाश कर
मनु - मनु पर हृदि वार
भिक्षुक बन खड़े द्वार
मांगते अन्नदान
निज कर बारंबार पसार
रख हृदय में प्रेम पुष्प
त्याग कर जीवन संताप
प्राप्त कर ज्ञान मोक्ष का
त्याग चले निज गात|-
~~~ गुरू वंदन ~~~
गुरू जगत के अनंत दर्पण
मुखरित हो मैं करती वंदन
माटी सम मेरी मनःस्थिति
माटी सम मेरा अंतर्मन
रचनाकार तुम सृजनकार
कण-कण बसते तुम भगवन
अबोध बाल मैं ईश तुम्हारी
बिखरे छंदों से करूं पूजन
छंद-छंद आशीष मिले प्रभु
वर्ण - वर्ण तुमको अर्पण
रहे सदा आशीष मुनिश
हे ईश! तुमसे यही निवेदन|-