इश्क के पल सनम थे हसीन ख़्वाब से,
जब दो दिल मिले किसी खुली किताब से।-
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!! शिव स्तुति !!
"कंकर-कंकर शंकर हैं।"
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अनुशीर्षक में..-
कभी चाँद संग हँसी-ठिठोली में डूबे अफसाने थे,
यूँ इतनी समझ कहाँ से लाये तुम तो इक दीवाने थे!-
अक्सर ढूँढ लाता है मिरे जज़्बात बाँहों में सजाकर,
सच,कुछ रिश्तों की आग़ोशी लफ़्ज़ों की मोहताज नहीं।-
अब न धुआँ न आग न साँसों की गर्मी है,
कभी कोई घर बसता था वहाँ उस राह में।-
दीदार-ए-इश्क़ कर निकला शहर से कमज़र्फ कोई,
कि अहल-ए-ज़र्फ़ सा न बचा है होठों पे अब हर्फ़ कोई।-
कागज़-कागज़ पन्ने-पन्ने नज़्म न जाने कितने उभरे,
हर एक नज़्म हर एक दफ़ा उन नज़्मों में तुम ठहरे।-
°°° त्रिवेणी °°°
फ़लक के सैर को निकली थी उसकी निगाहें आज,
कि टूटा ख्वाब कोई औ' बिखरी रह गई आवाज़।
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कविताएं औरत हो गईं हैं मेरी..
मोहब्बत नहीं औरतें लिखती हैं।-
°°° त्रिवेणी °°°
कोई अक़्स उभरा है मिरी कलम से आज,
जैसे अश्क़ ठहरा हो किसी किनारे आज।
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आज स्याही ने तस्वीर नहीं औरत जना है।
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