कौन कहता है की मैं अच्छा लिखता हूँ...!
अच्छे तो वो लोग हैं जो इसे पसंद करते है...!!-
इश्क़ की दास्तां अपनी तुम्हें हम क्या सुना दे
वो फिर चाहता है हम उसे यूँ ही भुला दे-
मैं तेरे साथ हरदम खड़ा रहा
क्यों तूने मुझको चुना नहीं
इस बात का दर्द रहेगा सदा
तू क्यों मेरे लिए ही बना नहीं
इश्क करने की सबको सजा मिली
वैसे प्यार कोई गुनाह नहीं
दिल तुम्हें सदा देकर थक गया
तुमने मुझको कभी सुना नहीं
तूने जब से मुझे छोड़ा 'करन'
कोई ख्वाब भी मैंने बुना नहीं
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मैं इस बार खुद को, ऐसी सजा दूँगा
हाल अपने दिल का, सब को बता दुँगा
जब कोई पूछेगा, मेरी खामोशी की वजह
मैं सब को तेरा नाम, बता दुँगा
अब की बार और देख रहा हूँ, तेरा इंतजार करके
इस बार तेरी यादों को, अश्कों में बहा दुँगा
अब नहीं आयेगा तेरा नाम, मेरे नाम के साथ
मैं अपने दिल से, तेरा नाम मिटा दुँगा
जब भी लगेगी आग, इस दिल की दुनिया में
मैं आकर सबसे पहले, इसको हवा दुँगा
मैं तो खुद को भी ना बचा सका, बर्बाद होने से 'करन'
फिर मैं किसी को इश्क में, मशवरा क्या दुँगा
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मेरे दिल में उसके लिए, मोहब्बत रहे
चाहे उसको मुझसे, शिकायत रहे
जिस चेहरे पे दिल, मेरा आया था कभी
उस चेहरे का नूर, सदा सलामत रहे-
पास है हम सब से, दूर रहकर कहीं,
काश, अपने आप से रूबरू हो जाए, पास रहकर।।-
वो कहती है कि मैंने, उनसे बेवफाई की
खुशी को छोड़कर मैंने, दर्द की अगुवाई की
आखिरी जशन रहा जिसमें,हाथों की मेंहदी लाल हुई
मातम सी लगती हैं तब से,धुन सारी शहनाई की-
इस कदर गुजरी है, उम्र वीराने में रहते हुए मेरी
अगर मैं चाहूँ तो खामोशी पर भी, निशाना लगा सकता हूँ
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मेरी आँखों के आँसू भी, जान चुके हैं वफा तुम्हारी
तुम्हारा नाम सुनकर, अब ये पलकें नम नहीं होती
तुम छोड़ दो मुझे या, कुछ और सितम भी कर लो
ऐसे ही कोई मोहब्बत यार, खत्म नहीं होती-