QUOTES ON #ऋतुराज

#ऋतुराज quotes

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सतरंगी रंग से रंगी वो इस बार की होली,
रग रग में रंग कर वो इस बार मेरी हो ली।

भीगी चुनर भीनी महकी, भीगी इस होली,
भाव भंगिमा के भंवर में वो मुझ में खो ली।

अब भी अबीर अशेष है कि आने को होली,
अनुरक्ति आसक्ति से वो मेरे अंक में आ ली।

छुप छुप छलकाती रंग बन छनछन सी होली,
छज्जे की ओट से मुझ पे छुईमुई सी छा ली।

प्रिया प्रियतमा बन खेली पिचकारी से होली,
पिया पथ पर रख के पग, वो मुझको पा ली।

बाहुपाश में हो कर बोली बहक जा इस होली,
बरसती प्रेम बारिश में वो बीज प्रेम का बो ली।

हृदय हर के वो हर्षित, हद तोड़ी दी इस होली,
हुई हया से वो हरी, कह दी मै तुम्हारी हो ली। _राज सोनी

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14 FEB 2024 AT 8:39



बसंत का आना एक कयामत, प्यार का पुष्प पल्लवित होता है,
हवा बसंती, चंचल चितवन, तब प्रेम में पुरुष बसंत हो जाता है।

भ्रमर बन प्रेयसी पर मंडराए, जेसे वो नवपल्लवित सी कौंपल हो,
देख प्रेयसी का प्रेम पराग, पुरुष पर महुआ का असर हो जाता है।

फाल्गुनी बयार से मदमस्त हो कर भीगी धानी चुनर प्रेयसी की,
सौगात प्रेम का बन कर गुलदस्ता, पुरुष का मन मयूर हो जाता है

ऋतु मधुमास की प्रीत रीत से प्रेयसी पीली सरसों सी बिखरी सी,
सुर्ख गुलाब सी लज्जा कपोलों से पुरुष वसंतवल्लभ हो जाता है।

कुहके कोयल, बहकी तितली, तन–मन हरितामा प्रेयसी की भी,
कच्ची कचनार सी उन्मत प्रिया से पुरुष प्रियवर में बदलता है।।

मन वीणा के तार झृकंत होने लगे प्रेयसी वरदायिनी पुरवाई सी,
बसंत मुहूर्त के प्रेमाक्षर से कर श्रीगणेश, प्रेम विद्यार्थी हो जाता है।

हरित पीत वसनों से लिपटी जेसी प्रेयसी दुल्हन सी श्रृंगारित हुई,
प्रेयसी के मद नयनों के पुष्पबाण से पुरुष ऋतुराज बन जाता है।

अमराई के बौर बौराए जैसे, वैसे तेरे भाल पर प्रेम का हस्ताक्षर हो,
प्रेम मदनोत्सव की दस्तक आहट में ये "राज" बसंत हो जाता है।
– राज सोनी

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14 FEB 2024 AT 9:27

कुसुमाकर का देखो मनोहरता आगमन
नवोत्कर्ष है छाया ,बज रही है जलतरंग

बोलता है मयूर देखो ,जिया ले हिल्लोर
प्रतिध्वनि तेरे स्वर की गूंजे है चहुँ ओर

प्रणय की कलियां मुझे करती है विभोर
आ जाओ प्रियतम अब नही करो ठिठोल

ऋतु सदा ही बदलती प्रकृति तेरे लिए
पर बसंत में तो सजती है सिर्फ़ तेरे लिए

कर सोलह श्रृंगार पहन पीत ,पुष्प ,परिधान
भोली भाली सी मन की राहें भटकती आज

ऋतुराज तराशो मुझे तुम ,ऋतुपति मौसम में
तराशता है प्रतिमा को जैसे हुनरमंद शिल्पकार

प्रकृति ने लुटाया बसंतराज पर देखो अथाह प्रेम
मधुरिम क्षणों में तुम भी बरसाओ ना मुझ पर प्रेम

माधव करो अंकित प्रेममयी चुम्बन मेरे भाल पर
उस क्षण मैं दमक उठूं तेरी प्रेमिका होने के दर्प से

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13 DEC 2018 AT 6:23

तुझपे फनाह हो जाने की भी किस्मत न मिली .
हमें तेरे प्यार में मर जाने की भी फुर्सत न मिली .

इतना मसरूफ हो गये थे हम तुझे याद करने में ,
कि तुझे भूल जाने की भी मुझे मोहलत न मिली .

दिल मिले न मिले किसी से हाथ ही मिला लेते ,
हमें यूँ भी रिश्ता निभा लेने की फितरत न मिली .

बहुत देर ही कर दी उसने यह "राज" खोलने में ,
कि हमारी तबीयत से उसकी तबीयत न मिली .

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4 JUN 2023 AT 21:15


अधरो के मरुस्थल पर पड़ती है जब
मधु सी मधुर प्रेममकरंद की बूंदे
द्विगुणित करती काया की हलचल
गात चंदन सी महक उठी तब

मंद-मंद बोल तेरे श्रुतिपटल तक पहुंचे
मद्धम मधुर संगीत झंकृत हो जैसे
सरगम, धुन , राग , लय ,ताल समेटे
अदृश्य सितार धमनी में बजा हो जैसे

सुदृढ़ बाहुपाश का असीमित घेरा
इच्छाएं ऋतुराज की देखो डाले डेरा
गुदगुदी अब पोर- पोर  तक पहुंची
प्रेम छुअन अब तैर गई नस-नस में

तुमसे हूँ  मैं अखण्ड सुहागिनी
दो अंजलि भर अपनत्व मुझे
संध्या अनुराग सुहागभरी अब
आओ प्रियवर कर दो संपूर्ण मुझे

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26 FEB 2020 AT 17:54

★★★एक झलक वसंत की★★★

चम-चम सी प्रिये
हाथों में थिरकते
मचलते कनक-कनक से
वो पीले सरसों के दाने
श्रृंगार कर पूरी
ठिठुरन को छोड़
मुँह फेरती मुस्काती
किरणों को कनखियों से
निहारती वो चंचल गौरैया
अलियों के गुँजन
मधुप की तिल-मिल वंदन
पास बुलाता गुलमोहर
नव-पर्ण की नवीन चाल
मंज़र से भरी डाल-डाल
इठलाती पछुआ पवन
पनकाती गोधूम को
नव-गंध से प्रफुल्लित
कीट-पतंग रम जाते दमन को
रवि-शशि की दशा-दिशा
देख, खग की कलरव-लीला
अन्ततः मन में आये एक ही वर्णन
बार-२ आओ वसंत! तुम्हारा अभिनंदन!अभिनंदन...

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10 JAN 2021 AT 12:15

बरस गये सोलह सावन के
उमड़ रहा अब जोवन

अगन लगाये अब सावन
जोवन कब भीगेगा

ऋतू आयी गयी कितनी
ऋतुराज मेरा न आया

अधरों का चुंबन लेकर
द्रवित मुझें कर देगा

मेरे जोवन का मर्दन करके
पौरुष का पान करायेगा

वो सावन कब आयेगा
ऋतुराज मेरा कब आयेगा

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26 FEB 2023 AT 12:26

अबीर गुलाल न सही
अंग लगा लो पिया मोहे
अब कि पिया इस होली में

विरह के आतिशबार अंगारों को
मिलन फुहारों से सरशार करो
अब कि पिया इस होली में

नहीं भाता अब श्वेत पैरह्रन
सिंदूरी रंग से परिप्लावित करो
अब कि पिया इस होली में

नीरवता का सन्नाटा घेरे
प्रेम से गुंजार करो मानस को
अब कि पिया इस होली में

अरमानों की झोली खाली
दुल्हा बन ऋतुराज तुम आओ
अब कि पिया इस होली में

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28 JAN 2019 AT 19:42

★★चली वसंत की होड़★★

चली वसंत की होड़
पतझड़ से ओतप्रोत
निर्झर वादी की मनमोहक समीर
भीनी-२ सी चमेली की खुशबू

टिमटिमाते अंतर्मुखी तारे
हँसते मटकते बरसते मेघ
गुनगुनाते पीले सरसों के दाने
खनकते बाँस के सुनहरे कोपलें

दंभ भरती मृदा ऊपज की
संवाद कड़क पछुआ पवन की
सुशील सी उड़न पंछियों की
शनैःशनैः खिलती कलियां कुसुम की

प्रभात में पनपी मनमोहक मोती
आशातीत अरुण की सुशोभित लालिमा
अंततः अंतर्मन से निकले एक ही वर्णन
बार-२ आओ वसंत! तुम्हारा है अभिनंदन!अभिनंदन!!

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11 JAN 2022 AT 23:25

ऋतुराज तेरे आगमन की हो रही वृहद तैयारी
नव-वधु सी नव-श्रृंगार कर रही ऋतु तुम्हारी

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