फूलों की घाटी की सुषमा
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ओरे पहाड़ म्यरों प्यारों पहाड़
अब सुणि सबुन यों तेरी पुकार-
कै भली छाजी रई हो यौं जुनली रात
यौं ठंडो ठंडो हव भ्यी ,यौं ठंडी ठंडी रात
यौं माह बैशाख भ्यो, भ्यो रूढ़िक दिन चार
काटी हली ग्यू या पाकी गो यौं काफल रसदार
चूल्हक रौट हैछी ,हैछी कधिन सिंसौडिक साग
छोड़ धैगी सब गौ क, अकेलो रै गो यौं पहाड़
लाल मटल लिपि भई कधिनी यौ धेई द्वार
लिखी इजन गेरूवल कै भली छाजछी यौं धेई द्वार
खेत सब उजाड़ हैगी, खंडर पड़ी गो यौं पहाड़
दयू चार मैस भ्यी ऊ ले है गई सब बेकार...
इष्टो की छाया भ्यी भ्यो बुड़ बाड़ियोक आशीर्वाद
जी रया जाग राय भेंटने रया अपण घर द्वार...
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उत्तराखंड की वादियां और तुम्हारा प्यार दोनों एक जैसे लगते हैं,
इनकी ख़ूबसूरती में, मैं अक्सर विलीन हो जाती हूँ।-
'पहाड़ की छांव'
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बचपन बीता जिस पहाड़ की छांव में
उस छांव से ही मुंह मोड़ चला..
थाम ली ख्वाबों की डगर
और मुसाफ़िर बन मैं चल पड़ा,
छोड़कर उस पहाड़ की छांव को पीछे
आगे-आगे मैं चल दिया..
मगर आगे मिले जो जिम्मेदारियों के पहाड़
फ़िर उन्हीं में उलझकर मैं रह गया,
भटका बहुत राहों में
अपनों से भी दूर हुआ..
देखे कई पहाड़ जीवन में
मगर उस पहाड़ की छांव के लिए तरसता रहा,
देख जीवन की तमाम लहरें
मैं गिरा,संभला,उठा और चला..
बस इस तरह....सुकून की तलाश में मैं
सुकून को ही छोड़ चला..!-
फूलों चारि तुम खिलनें रवो,
तारोंकि चारि तुम चमकनें रवो।
भाग्यल मिलिरै य जिंदगी,
खुदलै हंसो औरोंकें लै हंसोंनें रवो॥
जय उत्तराराखंड जय देव भूमि 🙏🙏-