सुन मेरे पहाड़.....
शरमाते है अक्सर महफ़िल में तेरी बोली को गुनगुनाने से
खुद को ठेठ तो लिखते है मगर लोग शायद वफ़ादार नहीं-
ओरे पहाड़ म्यरों प्यारों पहाड़
अब सुणि सबुन यों तेरी पुकार-
कै भली छाजी रई हो यौं जुनली रात
यौं ठंडो ठंडो हव भ्यी ,यौं ठंडी ठंडी रात
यौं माह बैशाख भ्यो, भ्यो रूढ़िक दिन चार
काटी हली ग्यू या पाकी गो यौं काफल रसदार
चूल्हक रौट हैछी ,हैछी कधिन सिंसौडिक साग
छोड़ धैगी सब गौ क, अकेलो रै गो यौं पहाड़
लाल मटल लिपि भई कधिनी यौ धेई द्वार
लिखी इजन गेरूवल कै भली छाजछी यौं धेई द्वार
खेत सब उजाड़ हैगी, खंडर पड़ी गो यौं पहाड़
दयू चार मैस भ्यी ऊ ले है गई सब बेकार...
इष्टो की छाया भ्यी भ्यो बुड़ बाड़ियोक आशीर्वाद
जी रया जाग राय भेंटने रया अपण घर द्वार...
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उत्तराखंड की वादियां और तुम्हारा प्यार दोनों एक जैसे लगते हैं,
इनकी ख़ूबसूरती में, मैं अक्सर विलीन हो जाती हूँ।-
सुन मेरे पहाड़........
तिराहे पर अस्मत लूटी , अधिकार चाहा तो गोलियां मिली
हिमालय तुझे सम्मान दिलाना इतना भी आसान कहां था..-
सुन मेरे पहाड़......
आवाज़ खांकर की गायब अब, तेरी सुनसान वादी से
इन बंजर खेतो को नया किसान बरसो से दिखा नहीं-
नीरस है जाम-ए-जिंदगी सुन, तेरा इंतज़ाम बेकार है
शामिल है भीड़ में कुछ बेवजह ही, कौन सा क़रार है
मेरा तय इरादा की खो जाऊं हुजूम के आने से पहले
वादी-ए-ग़ुरबत है, इश्क़ की चाह को ये क्यों तैयार है
अक्सर हंसता हूं रात को , तेरी कुदरत पर मौला मेरे
अंजान लिपटे शौक से और मेहबूब मेरा ही बेज़ार है-