क्या अनदेखा इश्क़ हो नहीं सकता? क्या अनछुआ प्यार हो नहीं सकता? क्या दिल से चाहत हो नहीं सकती? क्या रूह से मोहब्बत हो नहीं सकती? गर खुदा की ही है ये सारी इनायत, तो क्या जिस्म से परे, ये इबादत हो नहीं सकती?
तुम पहले जैसी इऩायत क्यों नहीं करते? फिर से बातों की वकालत क्यों नहीं करते? मुझसे मिलने की इबादत क्यों नहीं करते ? मुझसे नज़रें चुराने की शरारत क्यों नहीं करते?