तेरे दिल की उस बात का इल्म मुझे भी है, उस अनकहे जज़्बात का इल्म मुझे भी है, पर डर लगता है तेरे इश्क के इजहार से, झूठा सही ,इनकार मिलेगा इल्म तुझे भी है।
उस चिलचिलाती गर्मी में उसका यू गंगा किनारे आना, मुझे देखने की ख्वाहिश में बालू पे नंगे पांव जाना मालूम हैं मुझे वो तकती आंखे और जलते पैर उस वक्त भी था और आज भी है दिल उस अदा का दीवाना
तुम्हें याद रहा मुझे याद करना, जानकर अच्छा लगा। तुमने झूठ इस सच्चाई से बोला, सुनकर सच्चा लगा। खत्म हो चुकी है बाते कहने को, फिर भी कह देते है। तेरी दी हुई उस चूनर का , हर धागा आज कच्चा लगा।