एक खयाल ही तो आया था तुझसे जुदा होने का |
पर ना जाने क्यूं उस वक्त में ऐसा लगा ,
कि एक ज़माना गुज़र गया हैं |
पलकें झप्पकाई मैंने कुछ पल के लिए |
लगा कि दिल पिघल गया हैं ,
आशिक़ी को ज़िन्दगी से मिटाने के लिए |-
ज़िन्दगी को ज़िन्दगी तक जी लिया
बे-वजह ही दुश्मनी तक जी लिया
जी नहीं लगता कहीं अब क्या करूँ
हर किसी की दोस्ती तक जी लिया
हर कोई बस दर्द बन कर रह गया
इश्क़ को भी आशिक़ी तक जी लिया
कुछ मरासिम आज भी हैं पास में
दिल लगा कर मैं ख़ुशी तक जी लिया
मर के 'आरिफ़' सब को जाना है वहीं
ख़ुश रहा कर तू अभी तक जी लिया-
वाक़िआ कुछ नहीं ज़िन्दगी में अभी
इश्क़ कुछ कम रहा आशिक़ी में अभी
हादिसा कब हुआ पूछ लो ओ ख़ुदा
सिर झुका कर खड़ा बंदगी में अभी
सानेहा क्यों हुई ज़िन्दगी बेवजह
आब ही आब है तिश्नगी में अभी
इत्तिला तक नहीं इश्क़ है या जफ़ा
हमसफ़र मिल गया बानगी में अभी
इश्क़ भी है ज़हर पी लिया जान कर
मौत फिर आएगी दिल्लगी में अभी-
प्यास ये आग से बुझती तो बुझा लिया करते
इस तरह इश्क़ में इश्क़ को जला लिया करते
ज़िन्दगी बिन तेरे कुछ नहीं अभी-अभी जाना
ख़्वाब में ही सही पास तो बुला लिया करते
आज भी दर्द-ए-दिल भी उसे पुकारता है बस
इक दवा तो मिले दर्द-ए-दिल दबा लिया करते
कोशिशें करके भी कुछ नहीं हुआ हमें हासिल
मुश्किलें बोलतीं कुछ-न-कुछ बना लिया करते
प्यार से प्यार तक रास्ता मिला नहीं मुझको
ठोकरें खा के भी ज़िन्दगी चला लिया करते
आशिक़ी कुछ नहीं काश तुम समझ सको 'आरिफ़'
दिल्लगी छोड़ कर ख़ुद को हम छुपा लिया करते-
आशिक़ी तब तक तुम्हें तड़पाएगी,
जब तक तुम तड़पते रहोगे।
जिस दिन छोड़ दोगे तुम सोचना,
उस दिन दूर चला जायेगा,
इश्क़ में तुम्हारे एक तरफा पागलपन।।-
तुम किसी के साथ रहकर भी इतनी आशिक़ी
नहीं कर पाओगे।
जितना हम दूर रहकर तुम्हारे साथ निभाएंगे।।-
मोहब्बत से पेट नहीं भरता
चंद सिक्के भी जरूरी हैं आशिक़ी के लिए-
न जाने कैसे बदल लेते हैं महबूब बार-बार
हमें सौ बार इश्क़ हुआ और उनसे ही हुआ-