चूल्हे में पड़ी ठंडी राख़
अवशेष होंगी
आशाओं के अवसान पर
जलती हुई औरतों की
..
सदियों बाद जब
स्त्री को जानना होगा
ढूंढने होंगे नई पीढ़ी को
चूल्हें और उनकी राख़-
वह चले झोंके कि काँपे, भीम कायावान भूधर,
जड़ समेत उखड़-पुखड़कर, गिर पड़े, टूटे विटप वर,
हाय, तिनकों से विनिर्मित, घोंसलों पर क्या न बीती,
डगमगाए जबकि कंकड़, ईंट, पत्थर के महल-घर;
नाश के दु:ख से कभी, दबता नहीं निर्माण का सुख
प्रलय की निस्तब्धता से, सृष्टि का नव गान फिर-फिर!
नीड़ का निर्माण फिर-फिर, नेह का आह्वान फिर-फिर!-
निराशा को स्थान भी आखिर, वही 'आशा' देती है
जो 'भँवर' में डूबकर 'लहरों' से शिकायत करती है-
मेरे देख आँसू.. जो मुस्कुराते हैं
याद रखना.. दिन बुरे हर शख़्श पे आते हैं,
कुछ नया रखा है शायद दिल की पुरानी टहनी पे
तभी तो मौसम पतझड़ के.. दरख़्त पे आते हैं,
क्या मिलेगा सोच के.. के क्या होगा "मन" मेरे
नये अंकुर भी.. वक़्त पे आते हैं,
जीते-जी ही रिश्ते हैं सब मुहब्बत के
जलाने के बाद लोग कहाँ.. मरघट पे आते हैं,
मेरे देख आँसु.. जो मुस्कुराते हैं
याद रखना.. दिन बुरे हर शख्श पे आते हैं..!-
पत्ते झड़ जाते हैं
पर शाखायें रह जाती हैं,
सांसें रुक जाती हैं
पऱ हवायें रह जाती हैं,
जीवन है जिज्ञासा
चाहे हो घोर निराशा,
पर फ़िर भी कहीं मन में
आशायें रह जाती हैं..!-
रास्ते चौराहे में सब ओर से हैं
चलो.. "ज़िन्दगी" का रुख मोड़ते हैं
"माँझी".. पतवार तेरे हाथों में है
दिल चल.. कश्ती को तूफानों में छोड़ते हैं,
कठोर ही सही राह ख़्वाबों की
यह पत्थर.. धीरे-धीरे तोड़ते हैं,
माना.. ऊंची डगर हफां देगी
पऱ पांव हैं के मैदानों में दौड़ते हैं,
हम "शून्य"... को तन्हा क्यूँ रहने दें
उसमें क्यूँ ना.. एक औऱ अंक जोड़ते हैं!!-
टूटना भी कितना खूबसूरत है.. है ना...,
अब वो चाहे आसमां से बहती टिप टिप बारिश की बूँदें हों या.. पतझड़ में टहनियों से टूटते.. झड़ते पत्ते.. स्याह रात में टूटा कोई तारा हो.. या नयनों से बूँद बूँद अश्रु बहाता टूटा हुआ दिल,
प्रकृति हर शय के मिलन औऱ बिछुड़न को खूबसूरत बनाती है.. उसे जोड़-तोड़कर उसे औऱ भी अधिक निखरने का मौका देती है,
टूटना... टूट कर बिखर जाना
अपने अस्तित्व को खो देना.. यूँ तो मृत्यु समान है...
मगर टूटकर.. फ़िर अपने उसी स्वरूप में लौट आना
बस.. इसी का नाम ज़िन्दगी है!-
मैंने पक्के मकानों में इक़ कच्ची सी बस्ती रखी है
सुख में हंसना तो दुःख में मुस्कुराने की भी हस्ती रखी है,
अगर आजमाईश है उसकी तो आजमा ले हमें वो
मैंने तूफानों के आगे.. अपनी ख़ुद-परस्ती रखी है,
माना.. यह ख़ुशियों का सारा साग़र है उसका
मैंने इसमें अपनी भी इक़ छोटी सी.. कागज़ की कश्ती रखी है,
भले ले जाये कोई ख़्वाबों के खज़ाने..आँखों से
यह ज़िन्दगी मिट्टी है.. औऱ मैंने इसकी क़ीमत मिट्टी सी सस्ती रखी है!!-
पंछी मुहब्बत में जो तुझे अपना माने रे,
मनवा ना कर कैद, बंद पिंजरे में वो बेगाने रे..!
चुग-चुग चिड़िया घड़ी-भर चुग जाने दे,
रह जायेंगे यूँ ही तेरे अंगना के दाने रे..!-