लहू होता मोल है आज़ादी का, इस बात को उसने जाना था।
हर कीमत पर आज़ादी लेना, भारत के लाल ने जो ठाना था।
होता है कैसा ये शेर हिन्द का, पूरी दुनिया को दिखलाना था।
वो सुभाष का नारा ही था, सोते भारत को जिसने जगाना था।
अंग्रेज़ों के राज में भी जिसने, भारत की फौज खड़ी की थी।
एक मात्र अकेले योद्धा के लिए, बेशक चुनौतियां बड़ी सी थी।
उसने अकेले लड़ के भारत जीतना था या शहीद हो जाना था।
लहू होता मोल है आज़ादी का, इस बात को उसने जाना था।
ठुकरा कर स्वर्णिम भविष्य, जिसने कांटो पे चलना कबूला था।
हर हिन्दुस्तानी में वो आग जगा दी, जिसको हर कोई भुला था।
जय हिन्द के नारे कि ज्वाला में, जा अंग्रेज़ो को झुलसाना था।
लहू होता मोल है आज़ादी का, इस बात को उसने जाना था।
दो सौ साल की सत्ता का दंभ, जिस पराक्रमी ने था तोड़ दिया।
राष्ट्रवाद की वो हवा चलाई, मानो तुफां का रुख ही मोड़ दिया।
थर थर कंपाता अंग्रेज़ों को वो, बस पर्याप्त उसका गुर्राना था।
लहू होता मोल है आज़ादी का, इस बात को उसने जाना था।
राष्ट्रीयता का था जिस सपूत ने, जा सबको मतलब समझाया।
सदियों से मूक उस भारत में था वो, शूरवीर नेताजी कहलाया।
आज़ादी का वो यज्ञ किया जिसमें अंत में खुद जल जाना था।
लहू होता मोल है आज़ादी का, इस बात को उसने जाना था।-
तुझसे जुड़े आशियाने सारे मेरे पर,
कभी नज़र में तेरे था ना मेरा घर..
यकीं था मुकम्मल ना होगा तू ,
फिर भी ढूंढ़ता रहा तुझे दर दर..
तक़दीरे भी कही बयां ना थी जो,
मिटती पल में, ठहरती पल भर..
दिन भी आता नही वो जहां ख़त्म हो,
बरसो से चलता आ रहा सफ़र..
मिन्नतो से भी हासिल न हो पाया तू,
अब मिल एक घडी को तेरी रज़ा हो गर..-
उलझा हुआ अपनो के सवालो में
जाने क्या ढूंढ़ता रहता था किताबों में..
राज़ गहरा लिए थी उसकी आंखें
ज़ाहिर न हुआ जो कितनी ही मुलाकातों में..
यादों में छुपा रखा था किस्सा कोई
गूंजता था जो उसकी ख़ामोशी भरी आवाज़ों में..
कोई तो सपना था देखा उसने
पाया नहीं जिसे कभी कहीं खिताबों में..
आज़ाद उड़ने की चाहत रखता वो
परिंदा क़ैद है आज भी कहीं उन रिवाज़ो में...-
पाबन्दी थी इश्क़ पर... निभाना था यारी
जाने किसकी फतेह हुई,
ना इश्क़ मुक्कमल हुआ... ना यारी-
पिंजरे से उड़ा हुआ एक आज़ाद परिंदा हुं
मैं घायल हुं तो बस अपने पंखों से..
मरा नहीं मैं अबतक
अपने सपनों को लिए देखो
मेरे ख़्वाबों के आसमान में मैं ज़िंदा हुं..!!
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नींद की तलबगार आंखें ये
आजकल सारी रात जागती है..
कुछ अजीब सी कसक लिये
मेरे सपनों के पीछे भागती है...-
हर चेहरा मतलब का नकाब ओढ़े यहां,
इनकी खुदगर्ज़ी पर कमान ज़रूरी है...
कारीगर कमाल का होना चाहूंगा अब,
हर एक मुखौटे की पहचान ज़रूरी है...-
काश कुछ ऐसा भी होता,
कुछ और ही सच से परे होता...
एक पल को सपने पूरे होते मेरे,
और वो पल बस मेरा होता.......-