मोड़ थी कैसी तुझे थी खोने वाली मैं
बस रो ही पड़ी हूं कभी न रोने वाली मैं।।
क्या झोंका था चमक गया तन मन सारा
पता न था फ़िर राख होने वाली मैं।।
लहर थी कैसी मुझे भंवर में ले आई
नदी किनारे हाथ भिगोने वाली मैं।।
रंग कहां था फूल की पत्ती पत्ती में
किरण किरण से धूप पिरोने वाली मैं।।
दिन बीतते ही सबकुछ आंखों में फिरता है
जाग रही हूं आज मजे में सोने वाली मैं।।
जो कुछ इस पार है वो उस पार भी
नाव अब अपनी आप ही डुबोने वाली मैं।।
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#Commercian
राही हुं मैं..
रास्ता हुं में..
मंजिल भी शायद मैं ही हुं..
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एक शाम वो भी रूआंसा बैठेगा
मेरा सा उसका भी हाल होगा..
वो भी रोएगा..
सोचेगा मेरे बारे में,
उसे भी मेरे जाने का मलाल होगा..!!-
मैं अक्सर सोचती हूं
ये इश्क़ न होता तो क्या होता..??
वो गुलाब, खत, तस्वीरों के क्या कीमत होती..??
क्या गुलाब महज़ एक फूल होता..??
खत महज़ कागज़ होते..??
और तस्वीरें क्या बीरान होती..??
अगर ये इश्क़ न होता तो क्या होता..??
न होता बारिशों का इंतज़ार,
न होता शायद बातों में इकरार,
न होती आंखों में आँखें डाल बातें,
न होता बिन सोए बिताई हुई रातें..!!
लाल रंग भी क्या महज़ एक रंग ही होता..??
मैं अक्सर सोचती हूं...
ये इश्क़ अगर न होता तो क्या होता..??-
ना पढ़ो मुझे तुम हर्फ़ दर हर्फ़
हर पन्नें पर अपने शख्सियत को बदलते देखा मैंने..!!-
कुछ हार गई तक़दीर कुछ टूट गए सपने..!!
कुछ गैरों ने किया बरबाद कुछ भूल गए अपने..!!
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हम बेवकूफ़ हैं इसलिए शायद हमारे रिश्ते मज़बूत हैं
वरना समझदार होती तो अबतक रिश्ते तबाह हो चुके होते..!!-
चलो इश्क़ ना सही
मुझे चाहने की आदत है..!!
की क्या करें
हमे एक दूसरे की आदत है..!!
तू अपनी हुनर ए ऐतबार ना कर जाया
मैं आइना हुं
मुझे तो टूटने की आदत है..!!
मैं क्या बताऊं की मुझे सबर क्यों नहीं आता
या फ़िर यूं कहूं...
की मुझे तो तुझे निहारने की आदत है..!!-
मैं इतनी सांवली सी कैसे भा गई तुझे
सुनती हुं लोगों से अक्सर
ये ज़माना पागल है गोरे रंग वालों के पीछे..!!
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तू दरिया तो मैं इश्क़ हुं
कुछ देर मुझसा बन के तो देख..
कौन कितना गहरा है..
मुझमें ज़रा डूब के तो देख..!!-
कभी जो तुम यूं कहो तो दिल को थोड़ा सा सुकून आए..!!
की..
तमाम सबूतों और गवाहों को रद्द करता हूं मैं
वो ज़रा सी सांवली रंगत वाली है..
और उसी को पसंद करता हूं मैं..!!-